वेदों के अनुसार, शादी सिर्फ संतान प्राप्ति के लिए नहीं होती है। यह व्यक्ति को आध्यात्मिक विकास और जीवन-मृत्यु चक्र से मुक्ति दिलाती है। ऐसा माना जाता है कि विवाह के जरिए व्यक्ति इस जीवनकाल में अपने कर्तव्यों को पूर्ण रूप से पूरा कर सकता है। पति और पत्नी के बीच का यह पवित्र बंधन शिव और शक्ति के दिव्य मिलन का प्रतीक माना जाता है, जो सृजन और पोषण के लिए मुख्य है। 

शादी कई वजहों से किया जाता है, जैसे कि:
प्यार और रिश्ता शादी में दो लोग एक-दूसरे से प्यार करते हैं और एक-दूसरे के साथ एक बंधन में बंधते हैं. शादी में दो लोगों के बीच एक स्थायी रिश्ता बनता है. 

(01.) जिम्मेदारी शादी करने से व्यक्ति को अपनी ज़िम्मेदारियों का एहसास होता है. 

(02.) सामाजिक मान्यता शादी करने से इंसान के संबंध को सामाजिक मान्यता मिल जाती है.

(03.) आत्मविश्वास शादी करने से इंसान के अंदर आत्मविश्वास पैदा होता है.

(04.) मानसिक शांति शादी करने से इंसान को मानसिक शांति मिलती है. 

(05.) चिकित्सा लाभ शादी करने से इंसान अपने साथी के साथ चिकित्सा लाभ साझा कर सकता है.

(06.) आध्यात्मिक विकास वेदों के अनुसार, शादी से व्यक्ति को आध्यात्मिक विकास होता है. 

(07.) जीवन-मृत्यु चक्र से मुक्ति वेदों के मुताबिक, शादी से व्यक्ति को जीवन-मृत्यु चक्र से मुक्ति मिलती है. 

शादी एक व्यक्तिगत और सामुदायिक उत्सव होता है. यह एक महत्वपूर्ण मौका होता है, जब दो लोग एक-दूसरे के साथ एक नए जीवन की शुरुआत करते हैं.

अगर धार्मिक अनुष्ठान के अनुसार छेंका करना हैं, तो निम्नलिखित सामानों की जरूरत पड़ेगी। पंडितजी, शंख, अरवा चावल का अक्षत, दूव, गाय का गोबर, गंगाजल, मधु, दूध, दही, फूल, आम पत्ते और लकड़ी, नारियल, सिंदूर, जल कलश, जनेऊ, पान पत्ता, इत्र, सुपारी, दीया, रूई, कपूर, घी, हवन सामग्री, पांच तरह के अनाज, पचमेवा और कलेवा।

शादी से पहले दूल्हा-दुल्हन को हल्दी लगाई जाती है। इसका कारण यह है कि पीले रंग का सम्बध बृहस्पति, सूर्यदेव और मंगल से जोड़ा जाता है क्योंकि पीला रंग खुद में हल्का-सा लाल और नारंगी रंग भी समेटे हुए होता है। साथ ही पीला रंग विष्णु भगवान का रंग भी माना जाता है।

शादी से पहले मातृका पूजा की जाती है: 

शादी जैसे पवित्र काम में सफलता के लिए सप्त घृत मातृका पूजन किया जाता है, इस पूजा में षोडश मातृकाओं और नवग्रह की स्थापना की जाती है, षोडशमातृका पूजन में 'ॐ मनो जूति' मंत्र से अक्षत छोड़कर मातृका-मंडल की स्थापना की जाती है, इसके बाद गंधादि सामग्री से पूजा की जाती है. 

सप्तमातृकाएं यानी सात देवियां हैं:

ब्रह्माणी, वैष्णवी, माहेश्वरी, ऐन्द्री, कौमारी, वाराही, नारसिंही कहा जाता है कि शुंभ और निशुंभ राक्षसों से लड़ते समय देवी की मदद के लिए सभी देवताओं ने अपनी-अपनी सात शक्तियां भेजी थीं. ये सात शक्तियां ही सप्तमातृकाएं हैं. 

कन्यादान का अर्थ होता है कन्या का दान देना. सभी दानों में से यह दान सबसे बड़ा दान माना जाता है. इस रस्म के तहत हर पिता अपनी बेटी का हाथ वर के हाथ में सौंपता है जिसके बाद कन्या की सारी जिम्मेदारियां वर को निभानी होती हैं. कन्या दान एक ऐसी रस्म है जो कि पिता और बेटी के भावनात्मक रिश्ते को दर्शाती है.

विवाह के दौरान सात फेरे का महत्व

हिंदू धर्म में विवाह के दौरान सात फेरे लेने की परंपरा को सात जन्मों का बंधन माना गया है। विवाह में दूल्हा-दुल्हन अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे लेते हैं, ताकि वे अगले सात जन्मों तक साथ रह सकें। साथ ही वह पति-पत्नी के रिश्ते को मन, शरीर और आत्मा से निभाने का वादा भी करते हैं।

कन्या विदाई, शादी के बाद बेटी को माता-पिता के घर से ससुराल ले जाने की परंपरा है. यह एक महत्वपूर्ण रिवाज़ है और इसे सभी परिजनों को भावनाओं पर नियंत्रण रखकर करना चाहिए. विदाई के दौरान कई तरह की बातों का ध्यान रखा जाता है:

विदाई के समय दिशाशूल और राहुकाल का ध्यान रखना चाहिए, विदाई के समय गणेश भगवान की मूर्ति नहीं दी जाती, विदाई के समय अच्छे मंत्रों का पाठ करना चाहिए, विदाई के समय सुबह हल्दी-कुमकुम जैसी चीज़ें दी जाती हैं, विदाई के समय बेटी के हाथों में लोटा रखकर उसमें हल्दी और तांबे का सिक्का डालकर बेटी के सिर के ऊपर से सात बार घुमाना चाहिए, विदाई के बाद इस लोटे के पानी को पीपल के पेड़ पर चढ़ा देना चाहिए, बेटी को विदाई के समय झाड़ू, सूई, छननी, और अचार नहीं देना चाहिए.

शादी कराने के लिए पण्डित जी से सम्पर्क करें 

👇
{ BOOKING ENQUIRY }
👆

विवाह कराने हेतु बुकिंग पूछताछ पे दबाकर पण्डित जी उपलब्धता सुनिश्चित करें