।। श्रीं गणेशाय नमः ।।
वैभव लक्ष्मी व्रत करने का नियम
यह व्रत सौभाग्य शाली स्त्रियां करें तो उनको अति उत्तम फल मिलता है , पर घर में यदि सौभाग्यशाली स्त्रियां न हों तो कोई भी स्त्री एवं कुमारीका भी यह व्रत कर सकती हैं ।
स्त्री के बदले पुरुष भी यह व्रत करे तो उन्हें भी उत्तम फल अवश्य मिलता है ।
यह व्रत पूरी श्रद्धा और पवित्र भाव से करना चाहिए । खिन्न होकर या बिना भाव से यह व्रत नहीं करना चाहिए ।
यह व्रत शुक्रवार को किया जाता है ।व्रत शुरू करते समय ११ या २१ शुक्रवार की मन्नत माननी पड़ती है और पुस्तक में लिखी शास्त्रीय विधि अनुसार ही व्रत करना चाहिए ।
मन्नत के शुक्रवार पूरे होने पर विधिपूर्वक और शास्त्रीय रीति अनुसार उद्यापन करना चाहिए ।
यह विधि सरल है ; किन्तु शास्त्रीय विधि अनुसार व्रत न करने पर व्रत का पुरा फल नहीं मिलता है ।
एक बार व्रत पूरा करने के पश्चात फिर मन्नत मान सकते हैं और फिर से व्रत कर सकते हैं ।
माता लक्ष्मी देवी के अनेक स्वरूप हैं । उनमें उनका ' धनलक्ष्मी स्वरूप ' और ' वैभव लक्ष्मी' स्वरूप हैं और माता लक्ष्मी को श्रीयंत्र अति प्रिय हैं ।
व्रत करते समय श्रीयंत्र पूजा मां लक्ष्मी जी के हर स्वरूप को और श्रीयंत्र को प्रणाम करना चाहिए , तभी व्रत का पुर्ण फल मिलता हैं ।
अगर हम इतनी भी मेहनत नहीं कर सकते हैं तो मां लक्ष्मी देवी भी हमारे लिए कुछ करने को तैयार नहीं होंगी और हम पर उनकी कृपा नहीं होंगी ।
व्रत के दिन सुबह से ही जय मां लक्ष्मी ,जय मां लक्ष्मी मंत्र का स्मरण मन ही मन करना चाहिए । और मां का पुरे भाव से ध्यान करना चाहिए ।
शुक्रवार के दिन आप प्रवास या यात्रा पर गए हों तो वह शुक्रवार छोड़कर उनके बाद के शुक्रवार को व्रत करना चाहिए , पर व्रत अपने ही घर में करना चाहिए । सब मिलकर जितने शुक्रवार की मन्नत मानी हो , उतने शुक्रवार पुरे करने चाहिए ।
घर में सोना न हो तो चांदी का प्रयोग पूजा में रखनी चाहिए । अगर वह भी न हो तो रोकड़ , रूपया रखना चाहिए ।
व्रत पुरा होने पर कम से कम सात कुमारी कन्या को या स्त्रियों को या अपनी इच्छा अनुसार जैसे - ११ , २१ , ५१ ,१०१ , २५१ स्त्रियों को वैभव लक्ष्मी व्रत की पुस्तक या प्रतिमा कुमकुम का तिलक करके भेंट के रूप में देना चाहिए । जितनी ज्यादा आप पुस्तक या प्रतिमा आप जनमानस प्रदान करने में सक्षम हैं उतनी माता रानी मां लक्ष्मी की ज्यादा कृपा होगी और मां लक्ष्मी जी के इस अद्भुत व्रत का ज्यादा प्रचार प्रसार होगा ।
शुक्रवार के दिन व्रत करना हों स्त्री रजस्वला हो या सूतकी हों तो वह शुक्रवार व्रत छोड़ देना चाहिए और बाद के शुक्रवार से व्रत शुरू करना चाहिए । पर जितने शुक्रवार की मन्नत मानी हो उतने शुक्रवार पूरे करने चाहिए ।
व्रत की विधि शुरू करते वक़्त ' मां लक्ष्मी स्तवन ' का एक बार पाठ जरूर करना चाहिए ।
व्रत के दिन हो सके तो उपवास करना चाहिए और शाम को व्रत के पूर्ण होने पर मां का प्रसाद लेकर शुक्रवार करना चाहिए । अगर ना हो सके तो फलाहार या एक बार भी भोजन करके शुक्रवार करना चाहिए । अगर व्रतधारी का शरीर बहुत ही कमजोर हो तो दो बार भी भोजन ले सकते हैं । सबसे महत्त्व की बात यही है कि व्रतधारी मां लक्ष्मी जी पर पूरी पूरी श्रद्धा और भावना रखें और मेरी मनोकामना मां पूरी करेंगी ऐसा दृढ़ संकल्प करें ।
। मां वैभव लक्ष्मी आप पर प्रसन्न हों ।
एक बड़ा शहर था इस शहर में लाखों लोग रहते थे पहले के जमाने के लोग साथ साथ रहते थे और एक दूसरे के काम आते थे ।
पर नये जमाने के लोगों का स्वरूप ही अलग सा है सब अपने अपने काम में रत रहते हैं, किसी को किसी की परवाह नहीं घर के सदस्यों को भी एक दूसरे की परवाह नहीं होती, भजन कीर्तन, भक्ति भाव, दया परोपकार जैसे संस्कार कम हो गए हैं, शहर में बुराइयां बढ़ गई थीं, शराब, जुआ,रेस, व्यभिचार, चोरी डकैती जैसे बहुत से गुनाह शहर में होते थे ।
कहावत है कि हजारों निराशाओं में एक आंशा की किरण छिपी होती है, इस तरह इतनी सारी बुराइयों के बावजूद शहर में कुछ अच्छे लोग भी रहते थे ।
ऐसे ही अच्छे लोगों में सीता और उनके पति की गृहस्थी मानी जाती थी, सीता धार्मिक प्रवृत्ति की और संतोषी थी, उसका पति भी विवेकी और सुशील था ।
सीता और उनका पति ईमानदारी से जीते थे, वे किसी की बुराई न करते थे और प्रभु भजन में अच्छी तरह समय व्यतीत कर रहे थे, उनकी गृहस्थी आदर्श गृहस्थी थी और शहर के लोग उनकी गृहस्थी की सराहना करते थे।
सीता की गृहस्थी इसी तरह खुशी खुशी चल रही थी, पर कहा जाता है कि 'कर्म की गति अटल है' विधाता के लिखे कोई नहीं समक्ष सकता है, इन्सान का नसीब पलभर में राजा को रंक बना देता है और रंक को राजा ।
सीता के पति के पूर्व जन्म के कर्म भोगने के लिए बाकी रह गए होंगे कि वह बुरे लोगों से दोस्ती कर बैठा, वह जल्द से जल्द 'करोड़पति' होने के ख्वाब देखने लगा इसलिए वह ग़लत रास्ते पर चला गया और 'करोड़पति' की बजाय 'रोडपति' बन गया,
शहर में शराब, जुआ, रेस , चरस-गाजा वगैरह बुराइयां फैली हुई थीं, उनमें सीता का पति भी फंस गया, दोस्तों के साथ उसे भी शराब की आदत हो गई, जल्द पैसे वाला बनने की लालच में दोस्तों के साथ रेस जुआ भी खेलने लगा इस तरह बचाई हुई धनराशि, पत्नी के गहने, सब कुछ रेस-जुए में गवां दिए थे ।
इसी तरह एक वक्त ऐसा भी था कि वह सुशील पत्नी सीता के साथ मजे में रहता था और प्रभु भजन में सुख शांति से जीवन व्यतीत करता था उसके बजाय घर में दरिद्रता और भुखमरी फैल गई, सुख से खाने की बजाय दो वक्त भोजन के लाले पड़ गए और सीता को पति की गलियां खाने का वक्त आ गया था।
सीता सुशील और संस्कारी स्त्री थी, उसको पति के बर्ताव से बहुत दुःख हुआ किन्तु वह भगवान पर भरोसा करके बड़ा दिल रखकर दुःख सहने लगी, कहा जाता है कि सुख के पीछे दुःख और दुःख के पीछे सुख आता ही है, इसलिए दुःख के बाद सुख आयेगा ही, ऐसी आशा के साथ सीता प्रभु भक्ति में लीन रहने लगी।
इस तरह सीता असहाय दुःख बहते-बहते प्रभु भक्ति में समय बिताने लगी, अचानक एक दिन दोपहर को उनके द्वार पर किसी ने दस्तक दी ।
सीता सोच में पड़ गई कि मुझ जैसे गरीब के घर इस वक्त कौन आया होगा?
फिर भी द्वार पर आए हुए अतिथि का आदर करना चाहिए, ऐसे आर्य धर्म के संस्कार वाली सीता ने खड़े होकर द्वार खोला।
देखा तो सामने एक मां जी खड़ी थीं। वे बड़ी उम्र की लगती थीं। किन्तु उनके चेहरे पर अलौकिक तेज दिख रहा था। उनकी आंखों में से मानो अमृत बह रहा था। उनका भव्य चेहरा करुणा और प्यार से छलकता था। उनको देखते ही सीता के मन में अपार शांति छा गई। वैसे सीता इन मां जी को पहचानती न थी, फिर भी उनको देखकर सीता के रोम-रोम में आनन्द छा गया। सीता मां जी को आदर के साथ घर में ले आयी। घर में बिठाने के लिए कुछ भी नहीं था; अतः सीता ने सकुचा कर एक फटी चद्दर पर उनको बिठाया।
मां जी ने कहा- "क्यों सीता! मुझे पहचाना नहीं ?" सीता ने सकुचा कर कहा-"मां! आपको देखते ही बहुत खुशी हो रही है। बहुत शांति प्रतीत हो रही है। ऐसा लगता है कि मैं बहुत दिनों से जिसे ढूंढ रही थी वे आप ही हैं। पर मैं आपको पहचान नहीं पाई।"
मां जी ने हंसकर कहा- "क्यों? भूल गई? हर शुक्रवार को लक्ष्मीजी के मंदिर में भजन-कीर्तन होते हैं, तब मैं भी वहां आती हूं। वहां हर शुक्रवार को हम मिलते हैं।
पति जबसे गलत रास्ते पर चला गया था, तब से सीता बहुत दुखी हो गई थी और दुख की मारी वह लक्ष्मीजी के मंदिर में भी नहीं जाती थी। बाहर के लोगों के साथ नजर मिलाते भी उसे शर्म लगती थी। उसने दिमाग पर जोर दिया, पर यह मां जी याद नहीं आ रही थीं।
तभी मां जी ने कहा- 'तू लक्ष्मी जी के मंदिर में कितने मधुर भजन गाती थी! अभी तू दिखाई नहीं देती थी, इसलिए मुझे लगा कि कहीं तू बीमार तो नहीं हो गई है? ऐसा सोचकर मैं तुझे मिलने चली आई हूं।
मां जी के अति प्रेम भरे शब्दों से सीता का हृदय पिघल गया। उसकी आंखों में आंसू आ गए। मां जी के सामने वह बिलख-बिलख कर रोने लगी। यह देखकर मां जी सीता के नजदीक सरकीं और उसकी सिसकती पीठ पर प्यार भरा हाथ फेरकर सांत्वना देने लगीं।
मां जी ने कहा- "बेटी! सुख और दुःख तो धूप और छांव जैसे होते हैं। सुख के पीछे दुःख आता है, तो दुःख के पीछे सुख भी आता है। धैर्य रखो बेटी! और तुझे क्या परेशानी है? अपने दुःख की बात मुझे सुना। तेरा मन भी हल्का हो जाएगा और तेरे दुःख का कोई उपाय भी मिल जाएगा।
मां जी की बात सुनकर सीता के मन को शांति मिली। उसने मां जी से कहा, "मां! मेरी गृहस्थी में भरपूर सुख और खुशियां थीं। मेरे पति भी सुशील थे। भगवान की कृपा से पैसे की बात में भी हमें संतोष था । हम शांति से गृहस्थी चलाते ईश्वर भक्ति में अपना वक्त व्यतीत करते थे। यकायक हमारा भाग्य हमसे रूठ गया। मेरे पति की बुरे लोगों से दोस्ती हो गई। बुरी संगति की वजह से वे शराब, जुआ, रेस, चरस गांजा वगैरह खराब आदतों के शिकार हो गए। और उन्होंने सब कुछ गंवा दिया और हम रास्ते के भिखारी जैसे बन गए।
यह सुनकर मां जी ने कहा- "सुख के पीछे दुःख और दुःख के पीछे सुख आता ही रहता है। ऐसा भी कहा जाता है कि 'कर्म की गति न्यारी होती है।' हर इंसान को अपने कर्म भुगतने पड़ते हैं। इसलिए तू चिंता मत कर। अब तू कर्म भुगत चुकी है। अब तुम्हारे सुख के दिन अवश्य आएंगे। तू तो मां लक्ष्मीजी की भक्त है। मां लक्ष्मीजी तो प्रेम और करुणा की अवतार हैं। वे अपने भक्तों पर हमेशा ममता रखती हैं। इसलिए तू धैर्य रखकर मां लक्ष्मी जी का व्रत कर। इससे सबकुछ ठीक हो जाएगा।
मां लक्ष्मीजी का व्रत करने की बात सुनकर सीता के चेहरे पर चमक आ गई। उसने पूछा- "मां! लक्ष्मीजी का व्रत कैसे किया जाता है? वह मुझे समझाइये। मैं यह व्रत अवश्य करूंगी।"
मां जी ने कहा- "बेटी! मां लक्ष्मीजी का व्रत बहुत सरल है। उसे 'वरलक्ष्मी व्रत' या 'वैभवलक्ष्मी व्रत' भी कहा जाता है। यह व्रत करने वाले की सब मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। वह सुख-सम्पत्ति और यश प्राप्त करता है।" ऐसा कहकर मां जी 'वैभवलक्ष्मी व्रत' की विधि कहने लगीं।
बेटी! वैभवलक्ष्मी व्रत वैसे तो सीधा-सादा व्रत है। किन्तु कई लोग यह व्रत गलत तरीके से करते हैं, अतः उसका फल नहीं मिलता। कई लोग कहते हैं कि सोने के गहनों की हल्दी कुमकुम से पूजा करो। बस! व्रत हो गया। तभी उसका फल मिलता है। सिर्फ सोने के गहनों की पूजा करने से फल मिल जाता तो सभी आज लखपति बन गए होते। सच्ची बात यह है कि सोने के गहनों का विधि से पूजन करना चाहिए। वत के उद्यापन की विधि भी शास्त्रीय होनी चाहिए। तभी यह 'वैभवलक्ष्मी व्रत' पूर्ण फल देता है।
यह व्रत शुक्रवार को करना चाहिए। सुबह में स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनो और सारा दिन मन में 'जय मां लक्ष्मी' 'जय मां लक्ष्मी' नाम का स्मरण करते रहो। किसी की चुगली नहीं करनी चाहिए। शाम को पूर्व दिशा में मुंह रहे, इस तरह आसन पर बैठ जाओ।
सामने पाटा रखकर उसके ऊपर रुमाल रखो। रुमाल पर चावल का छोटा-सा ढेर करो। उस ढेर पर पानी से भरा तांबे का कलश रखकर, कलश पर एक कटोरी रखो। उस कटोरी में एक सोने का गहना रखो। सोने का न हो तो चांदी का भी चलेगा। चांदी का न हो तो नकद रुपया भी चलेगा। बाद में घी का दीपक जलाकर धूप सुलगा कर रखो।
मां लक्ष्मीजी के बहुत स्वरूप हैं और मां लक्ष्मीजी को 'श्रीयंत्र' अति प्रिय है। अतः वैभवलक्ष्मी व्रत विधि अनुसार करते वक्त सर्वप्रथम 'श्री यंत्र' और लक्ष्मीजी के विविध स्वरूपों का सच्चे भाव से दर्शन करो। उसके बाद लक्ष्मी स्तवन का पाठ करो। बाद में कटोरी में रखे हुए गहने या रुपयों का हल्दी- कुमकुम और चावल चढ़ाकर पूजन करो और लाल रंग का फूल चढ़ाओ। शाम को कोई मीठी चीज बनाकर उसका प्रसाद रखो। न हो सके तो शक्कर या गुड़ भी चल सकता है। फिर आरती करके ग्यारह बार सच्चे हृदय से 'जय मां लक्ष्मी' बोलो। बाद में ग्यारह या इक्कीस शुक्रवार यह व्रत करने का दृढ़संकल्प मां के सामने करो और आपकी जो मनोकामना हो वह पूरी करने को मां लक्ष्मीजी से विनती करो। फिर मां का प्रसाद बांट दो और थोड़ा प्रसाद अपने लिए रखो। अगर आप में शक्ति हो तो सारा दिन उपवास रखो, सिर्फ प्रसाद खाकर शुक्रवार करो। न शक्ति हो तो एक बार शाम को प्रसाद ग्रहण करते समय खाना खा लो। अगर थोड़ी शक्ति भी न हो तो तो दो बार भोजन कर सकते हो। बाद में कटोरी में रखा गहना या रुपये ले लो। कलश का पानी तुलसी क्यारी में डाल दो। और चावल पक्षियों को डाल दो। इसी तरह शास्त्रीय विधि अनुसार व्रत करने से उसका फल अवश्य मिलता है। इस व्रत के प्रभाव से सब प्रकार की विपत्ति दूर होकर आदमी मालामाल हो जाता है। संतान न हो तो उसे संतान प्राप्ति होती है। सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखंड रहता है। कुमारी लड़की को मनभावन पति मिलता है।",
सीता यह सुनकर आनंदित हो गई। फिर पूछा- "मां आपने 'वैभवलक्ष्मी व्रत' की जो शास्त्रीय विधि बताई है. वैसे मैं अवश्य करूंगी। किन्तु इसका उद्यापन किस तरह करना चाहिए? यह भी कृपा करके बतलाइये?"
मां जी ने कहा- "ग्यारह या इक्कीस जो मन्नत मानी हो, उतने शुक्रवार यह 'वैभवलक्ष्मी व्रत' पूरी श्रद्धा और भावना से करना चाहिए। व्रत के आखिरी शुक्रवार को जो शास्त्रीय विधि अनुसार उद्यापन विधि करनी चाहिए, वह तुझे बताती हूं। आखिरी शुक्रवार को खीर या नैवेद्य रखो। पूजन विधि जैसे हर शुक्रवार को करते हैं वैसे ही करनी चाहिए। पूजन विधि के बाद श्रीफल फोड़ो और कम से कम सात कुंवारी या सौभाग्यशाली स्त्रियों को कुमकुम का तिलक करके 'वैभवलक्ष्मी व्रत की एक एक पुस्तक उपहार में देनी चाहिए और सबको खीर का प्रसाद देना चाहिए। फिर धनलक्ष्मी स्वरूप, वैभवलक्ष्मी स्वरूप मां लक्ष्मीजी की छवि को प्रणाम करें। मां लक्ष्मीजी का यह स्वरूप वैभव देने वाला है। प्रणाम करके मन ही मन भावकुता से मां की प्रार्थना करते वक्त कहें कि हे मां धनलक्ष्मी ! मां वैभवलक्ष्मी! मैंने सच्चे हृदय से आपका वैभव लक्ष्मी व्रत पूर्ण किया है, तो हे मां! हमारी (जो मनोकामना की हो वह बोलो) मनोकामना पूर्ण करो। हम सबका कल्याण करो। जिसे संतान न हो उसे संतान देना। सौभाग्यशाली स्त्री का सौभाग्य अखंड रहना। कुंवारी लड़की को मनभावन पति देना। आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत जो करे, उसकी सब विपत्ति दूर करना। सबको सुखी करना। हे मां! आपकी महिमा अपरम्पार है।
इस तरह मां की प्रार्थना करके मां लक्ष्मीजी के 'धनलक्ष्मी स्वरूप' की भाव से वंदना करो। "
मां जी के मुख से 'वैभवलक्ष्मी व्रत' की शास्त्रीय विधि सुनकर सीता भाव-विभोर हो उठी। उसे लगा मानो अब सुख का रास्ता मिल गया है। उसने आंखें बंद करके मन ही मन उसी क्षण संकल्प लिया कि, "हे वैभवलक्ष्मी मां! मैं भी मां जी के कहे मुताबिक श्रद्धा से, शास्त्रीय विधि अनुसार 'वैभवलक्ष्मी व्रत' इक्कीस शुक्रवार तक करूंगी और व्रत का शास्त्रीय विधि अनुसार उद्यापन भी करूंगी।
सीता ने संकल्प करके आंखें खोलीं तो सामने कोई न था। वह विस्मित हो गई कि मां जी कहां गईं? यह मां जी दूसरा कोई न था... साक्षात् लक्ष्मीजी ही थीं। सीता लक्ष्मीजी की भक्त थी, इसलिए अपने भक्त को रास्ता दिखाने के लिए मां लक्ष्मी देवी मां जी का स्वरूप धारण करके सीता के पास आई थीं।
दूसरे दिन शुक्रवार था। सवेरे स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनकर सीता मन ही मन श्रद्धा से और पूरे भाव से 'जय मां लक्ष्मी', जय मां लक्ष्मी, का मन ही मन सुमिरन करने लगी। सारा दिन किसी की चुगली नहीं की। शाम हुई तब हाथ-पांव मुंह धोकर सीता पूर्व दिशा में मुंह करके बैठी। घर में पहले सोने के बहुत से गहने थे। पर पतिदेव ने गलत रास्ते पर चलकर सब गहने गिरवी रख दिए थे। पर नाक की चुन्नी बच गई थी। नाक की चुन्नी निकालकर, उसे धोकर सीता ने कटोरी में रख दिया। सामने पाटे पर रुमाल रखकर मुट्ठी भर चावल का ढेर किया। उस पर तांबे का कलश पानी भरकर रखा। उसके ऊपर चुन्नी वाली कटोरी रखी। फिर मां जी ने कहा था, वैसे ही शास्त्रीय विधि अनुसार वंदन, स्तवन, पूजन वगैरह किया और घर में थोड़ी शक्कर थी, वह प्रसाद में रखकर 'वैभवलक्ष्मी व्रत किया।
यह प्रसाद पहले पति को खिलाया। प्रसाद खाते ही पति के स्वभाव में फर्क पड़ गया। उस दिन उसने सीता को मारा नहीं, सताया भी नहीं। सीता को बहुत आनन्द हुआ। उनके मन में 'वैभवलक्ष्मी व्रत' के लिए श्रद्धा और बढ़ गई।
सीता ने पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से इक्कीस शुक्रवार तक 'वैभवलक्ष्मी व्रत' किया। इक्कीसवें शुक्रवार को मांजी के कहे मुताबिक उद्यापन विधि करके सात स्त्रियों को 'वैभवलक्ष्मी व्रत' की सात पुस्तकें उपहार में दीं। फिर माता जी के 'धनलक्ष्मी स्वरूप' की छवि को वंदन करके भाव से मन ही मन प्रार्थना करने लगी है मां लक्ष्मी! मैंने आपका 'वैभवलक्ष्मी व्रत' करने की मन्नत मानी थी, वह व्रत आज पूर्ण किया है। हे मां! मेरी हर विपत्ति दूर करो। हम सबका कल्याण करो। जिसे संतान न हो, उसे संतान देना। सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखंड रखना। कुंवारी लड़की को मनभावन पति देना। आपका यह चमत्कारी 'वैभवलक्ष्मी व्रत' जो करे, उसकी सब विपत्ति दूर करना । सबको सुखी करना। हे मां! आपकी महिमा अपार है। ऐसा बोलकर लक्ष्मी जी के 'धनलक्ष्मी स्वरूप' की छवि को प्रणाम किया।
इस तरह की शास्त्रीय विधिपूर्वक सीता ने श्रद्धा से व्रत किया और तुरंत ही उसे फल मिला। उसका पति गलत रास्ते पर चला गया था वह अच्छा आदमी हो गया और कड़ी मेहनत करके व्यवसाय करने लगा। मां लक्ष्मी के ' वैभव लक्ष्मी व्रत ' के प्रभाव से उसको ज्यादा मुनाफा होने लगा। उसने तुरंत सीता के गिरवी रखे गहने जुड़ा लिए। घर में धन की बाढ़ सी आ गई। घर में पहले जैसी सुख-शांति छा गई।
' वैभव लक्ष्मी व्रत ' का प्रभाव देखकर मौहल्ले की दुसरी स्त्रियां भी शास्त्रीय विधिपूर्वक ' वैभव लक्ष्मी व्रत ' करने लगीं।
हे मां धनलक्ष्मी! आप जैसे सीता पर प्रसन्न हुईं, उसी तरह आपका व्रत करने वाले सब पर प्रसन्न होना। सबको सुख शांति देना। जय धनलक्ष्मी मां! जय वैभव लक्ष्मी मां ।।
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