रुद्राक्ष स्वयं शिव का अंश है । रुद्राक्ष को शिवाक्ष, शर्वाक्ष, भावाक्ष, फलाक्ष, भूतनाशन, पावन, हराक्ष, नीलकंठ, तृणमेरु, शिवप्रिय, अमर और पुष्पचामर नामों से भी जाना जाता हैं । यह रूद्रास देवों के देव महादेव को अत्यन्त प्रिय है । आयुर्वेद के ग्रंथों और शास्त्रों में भी रुद्राक्ष की महामहिमा का वर्णन मिलता है । आयुर्वेदिक ग्रंथों में रुद्राक्ष को महौषधि, दिव्य औषधि माना जाता है । इसके दिव्य गुणों को शास्त्रों में विस्तार से वर्णन किया गया है । 


रुद्राक्ष की जड़, छाल, फल, बीज और फूल सब में औषधीय व दैवीय गुण छिपे हुये है । यदि कोई भी तंत्र मंत्र जादू टोना अथवा किसी बुरे साए से परेशान है । किसी की भी नजर नजर लगी हो, तरह तरह के ग्रहों की दशाओं ने जीवन की नैया को डावा-ड़ोल कर दिया हो, बुद्धि विवेक मस्तिष्क तनाव या किसी समस्या के कारण ठीक से काम न कर पा रहे हो, हृदय रोगों से परेशान हों, नक्षत्र दोष के कारण बनते काम बिगड़ रहे हों, तो रूद्रास धारण करने से, विधी विधान से पूजा पाठ करने से ये सब ठीक हो सकते है ।


शिव पुराण में कहा गया है कि जिसने रुद्राक्ष धारण कर रखा हो, वो तो स्वयं शिव ही हो जाता है । अगर किसी को लगता है कि उसका भाग्य साथ नहीं दे रहा, वो बहुत ही ज्यादा चंचल है और इस बजह से लगातार अपना नुक्सान कर रहे हैं, तो शिव के मन्त्रों से प्राण प्रतिष्ठा कर रुद्राक्ष धारण करने से जीवन में स्थिरता आने लगती है । राहु, शनि, केतु, मंगल जैसे क्रूर ग्रहों के दुष्प्रभाव से होने वाले रोगों व संकटों का नाश भी रूद्रास धारण करने से हो जाता है । रूद्रास धारण करने से जीवन के संघर्षों से राहत मिलेगी, साथ ही अकाल मृत्यु, दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है ।


स्कन्द पुराण और लिंग पुराण में कहा गया है कि रुद्राक्ष से आत्मविश्वास और मनोबल बढ़ता है । कार्य, व्यवसाय, व्यापार में अपार सफलता दिलवाता है । रुद्राक्ष सुख समृद्धि प्रदान करता है, साथ ही साथ पाप, शाप, ताप से भी भक्त की रक्षा करता है । रुद्राक्ष भारत, नेपाल, जावा, मलाया जैसे देशों में पैदा होता है । भारत के असाम, बंगाल, देहरादून के जंगलों में पर्याप्त मात्र में रुद्राक्ष पैदा होतें है । रुद्राक्ष का फल कुछ नीला और बैंगनी रंग का होता है जिसके अन्दर गुठली के रूप में स्थित होता है । लेकिन रुद्राक्ष का एक हमशक्ल भी होता है जिसे भद्राक्ष कहा जाता है, पर उसमें रुद्राक्ष जैसे गुण नहीं होते । 


शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार रुद्राक्ष की क्षमता उसके मुखों के अनुसार ही होती है । रुद्राक्ष एक मुखी से ले कर इक्कीस मुखी तक प्राय: मिल जाते है । सबकी अलौकिकता एवं क्षमता अलग अलग होती है । हिमालय की तराइयों से प्राप्त रुद्राक्ष की महिमा सबसे बड़ी कही गई है । दस मुखी और चौदह मुखी रुद्राक्ष अतिदुर्लभ कहे गए है । पंद्रह से ले कर इक्कीस मुखी तक के रुद्राक्ष साधारणतय: नहीं मिल पाते । और एक मुखी की तो महिमा ही अपरम्पार है । 


जिसे मिल जाए उसे जीवन में फिर कुछ और पाना शेष नहीं रहता । वो केवल अत्यंत भाग्य वाले को ही मिल पाता है । रुद्राक्षों में नन्दी रुद्राक्ष, गौरी शंकर रुद्राक्ष, त्रिजूटी रुद्राक्ष, गणेश रुद्राक्ष, लक्ष्मी रुद्राक्ष, त्रिशूल रुद्राक्ष और डमरू रुद्राक्ष भी होते है । जो अंत्यंत दैविक माने गए हैं ।


रुद्राक्ष का प्रयोग औषधि के रूप में तो होता ही है साथ ही इसे धारण भी किया जाता है या पूजा के लिए, माला के रूप में प्रयुक्त होता है । स्फटिक शिवलिंग, बाण लिंग अथवा पारद शिवलिंग को स्थापित कर यदि रुद्राक्ष धारण कर लिया जाए तो वो व्यक्ति सम्राटों जैसा बैभव प्राप्त कर लेता है । 


रुद्राक्ष ऐसा तेजस्वी मनका है जिसका उपयोग बड़े बड़े योगी संत ऋषि मुनि महात्मा परमहंस तो करते ही है । साथ ही साथ तांत्रिक अघोरी जैसी वाममार्गी विद्याओं के जानकार भी इसके चमत्कारी प्रभावों के कारण इसकी महिमा गाते फिरते है । भारत के सिद्ध रुद्राक्षों का प्रयोग तो आज विश्व के हर कोने में बैठा व्यक्ति कर ही रहा है ।


स्कंध पुराण में कार्तिकेय जी भगवान शिव से रुद्राक्ष की महिमा और उत्पत्ति के बारे में प्रश्न पूछते है तो स्वयं शिव कहते है कि—


हे षडानन कार्तिकेय ! सुनो, मैं संक्षेप में बताता हूँ । पूर्व काल में युद्ध में मुश्किल से जीता जाने वाला दैत्यों का राजा त्रिपुर था । उस दैत्यराज त्रिपुर नें जब सभी देवताओं को युद्ध में परास्त कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया । तो ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र, प्रमुख देवगण तथा पन्नग गण मेरे पास आ कर त्रिपुर का बध करने के लिए मेरा प्रार्थना करने लगे । 


देवताओं की प्रार्थना सुन कर संसार की रक्षा के लिए बेग से अपने धनुष के साथ सर्व देवमय भयहारी कालाग्नि नाम के दिव्य अघोर अस्त्र को ले कर दैत्य राज त्रिपुर का बध करने के लिए चल पड़ा । लेकिन उसे हम त्रिदेवों से अनेक वर प्राप्त थे । इसलिए युद्ध में लम्बा समय लगा । एक हजार दिव्य वर्षों तक लगातार क्रोद्धमय युद्ध करने से व योगाग्नि के तेज के कारण अत्यंत विह्वल हुये मेरे नेत्रों से व्याकुल हो आंसू गिरने लगे ।


योगमाया की अद्भुत इच्छा से निकले वो आंसू जब धरा पर गिरे और बृक्ष के रूप में उत्त्पन्न हुये, तो रुद्राक्ष के नाम से विख्यात हो गए । ये षडानन रुद्राक्ष को धारण करने से महापुण्य होता है । इसमें तनिक भी संदेह नहीं है । रुद्राक्षों के दिव्य तेज से हर कोई दुखों से मुक्ति पा कर सुखमय जीवन जी सकता है । देवो के देव महादेव की कृपा पा सकता है 


रुद्राक्ष स्वयं शिव का अंश है । रुद्राक्ष को शिवाक्ष, शर्वाक्ष, भावाक्ष, फलाक्ष, भूतनाशन, पावन, हराक्ष, नीलकंठ, तृणमेरु, शिवप्रिय, अमर और पुष्पचामर नामों से भी जाना जाता हैं । यह रूद्रास देवों के देव महादेव को अत्यन्त प्रिय है । 


आयुर्वेद के ग्रंथों और शास्त्रों में भी रुद्राक्ष की महामहिमा का वर्णन मिलता है । आयुर्वेदिक ग्रंथों में रुद्राक्ष को महौषधि, दिव्य औषधि माना जाता है । इसके दिव्य गुणों को शास्त्रों में विस्तार से वर्णन किया गया है । रुद्राक्ष की जड़, छाल, फल, बीज और फूल सब में औषधीय व दैवीय गुण छिपे हुये है । यदि कोई भी तंत्र मंत्र जादू टोना अथवा किसी बुरे साए से परेशान है । किसी की भी नजर लगी हो, तरह तरह के ग्रहों की दशाओं ने जीवन की नैया को डावा-ड़ोल कर दिया हो, बुद्धि विवेक मस्तिष्क तनाव या किसी समस्या के कारण ठीक से काम न कर पा रहे हो, हृदय रोगों और से परेशान हों, नक्षत्र दोष के कारण बनते काम बिगड़ रहे हों, तो रूद्रास धारण करने से, विधी विधान से पूजा पाठ करने से ये सब ठीक हो सकते है ।


शिव पुराण में कहा गया है कि जिसने रुद्राक्ष धारण कर रखा हो, वो तो स्वयं शिव ही हो जाता है । अगर किसी को लगता है कि उसका भाग्य साथ नहीं दे रहा, वो बहुत ही ज्यादा चंचल है और इस बजह से लगातार अपना नुक्सान कर रहे हैं, तो शिव के मन्त्रों से प्राण प्रतिष्ठा कर रुद्राक्ष धारण करने से जीवन में स्थिरता आने लगती है । राहु, शनि, केतु, मंगल जैसे क्रूर ग्रहों के दुष्प्रभाव से होने वाले रोगों व संकटों का नाश भी रूद्रास धारण करने से हो जाता है । रूद्रास धारण करने से जीवन के संघर्षों से राहत मिलेगी, साथ ही अकाल मृत्यु, दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है ।