घोरचण्डी महाचंण्डी चामुंडी चंण्डमुंण्ड विखंण्डनी।
चतुर्वक्त्रा महाविर्या महादेवविभूषिता।।१।।
रक्तदन्ता वरारोहा महिषासुरमर्दिनि ।
तारिणी जननी दुर्गा चंण्डीका चंण्डविक्रमा ।।२।।
महाकाली जगतद्धात्री चण्डी च यामलोदभवा ।
शमशानवासिनी देवी घोरचंण्डी भयानका ।।३।।
शिवा घोरा ऱूद्रचंण्डी महेशा गणभूषिता ।
जाहवी परमा कृष्णा महात्रिपुरसुंदरी ।।४।।
श्रीविद्या परमाविद्या चण्डिका वैरिमर्दिनी ।
दुर्गा दुर्गशिवाघोरा चंण्डहस्ता प्रचंण्डिका।।५।।
माहेशी स्थिरादेवी भैरवी चंण्डविक्रमा ।
प्रमथैर्भूषिता कृष्णा चामुण्डामुण्डमर्दिनी ।।६।।
रणखण्डा चन्द्रघण्टा रणेरामवरप्रदा ।
मारणी भद्रकाली च शिवा घोरभयानका ।।७।।
शिवप्रिया महामाया नन्दगोपगृहोदभवा।
मगंला जन्नीचण्डी महाक्रुद्धा भयंकरी ।।८।।
विमला भैरवी निंद्रा जातिरूपा मनोहरा ।
तृष्णा निद्रा क्षुधा माया शक्तिमार्यामनोहरा ।।९।।
तस्यै देव्यै नमस्तस्यै सर्वरूपणे संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमोनमः।१०।।
भवानी च भवानी च भवानी चोच्यते बुधै।
भकारस्तु भकारस्तु भकारः केवल शिव।।११।।
महाचण्डी शिवा घोरा महाभीमा भयानका ।
कांचनी कमला विधा महारोगविमर्दिनी।।१२।।
गुह्यचण्डी घोरचण्डी चण्डी त्रैलोक्यदुर्लभा।
देवानां दुर्लभा चण्डी रूद्रयामलसंमता।।१३।।
अप्रकाश्या महादेवी प्रिया रावणमर्दिनी।
मत्यस्यप्रिया मांसरता मत्स्यमांसबलिप्रिया।।१४।।
मदमत्ता महानित्या भूतप्रमथसंगता ।
महाभागा महारामा धान्यदा धनरत्नदा ।।१५।।
वस्त्रादा मणिराज्यादि सदाविषयवर्धिनी ।
मुक्तिदा सर्वदा चण्डी महाविपदनाशिनी।।१६।।
रूद्रध्येया रूद्ररूपा रूद्राणी रूद्रवल्लभा।
रूद्रशक्ति रूद्ररूपा रूद्रमुखसमविन्वता।।१७।।
शिवचण्डी महाचण्डी शिवप्रेतगणान्विता ।
भैरवी परमाविधा महाविधा च षोडशी ।।१८।।
सुंदरी परमपूज्या महात्रिपुरसुंदरी ।
गुह्यकाली भद्रकाली महाकालविमर्दिनी ।।१९।।
कृष्णा तृष्णास्वरूपा सा जगन्मोहनकारणी।
अतिमन्त्रा महालज्जा सर्वमंगलदायनी।।२०।।
घोरतंत्री भीमरूपा भीमा देवी मनोहरा ।
मंगल बगला सिद्धिदायिनी सर्वदाशिवा ।।२१।।
स्मृतिरूपा कीर्तिरूपा योर्गीद्रैरपि सविता ।
भयानका महादेवी भयदुःख विनाशिनी ।।२२।।
चण्डिका शक्तिहस्ता च कुमारी सर्वकामदा ।
वाराही च वराहास्या इन्द्राणी शक्रपूजिता ।।२३।।
माहेश्वरी महेशस्य महेशगणभूषिता ।
चामुण्डा नारसिंही च नृसिंहशत्रुविमर्दिनी ।।२४।।
सर्वशत्रुप्रशमनी सर्वारोग्यप्रदायिनी ।
इति सत्यं महादेवि सत्यं सत्यं वदाम्यहम् ।।२५।।
इन पच्चीस श्लोकों की स्तुति रूद्रचंण्डी कहलाती है इसके प्रथम दस श्लोकों का पाठ कामापराधों के शमन के लिए होता है बाद के पन्द्रह श्लोकों का भी अघमर्षण के लिए ही किए जाते हैं व्यक्ति निर्मल होने पर ही आध्यात्मिक शांति का अधिकारी होता है चंण्डी का अर्थ घोर होता है
इसका घोर स्वरूप एक शहर एवं आवश्यक आवश्यकता है महिष शुभं निशुंभ चंण्ड मुंण्ड आदि क्रूर कर्म और प्रचंड पराक्रमी उसे असुरों का नाश सौम्यरूप से संभव नहीं होता है इसलिए परमवात्सल्यरूपणी मां को चंण्डी चामुंण्डा जैसे रूप धारण करने पड़ते हैं।
इन श्लोकों में वह रूद्र और विकट हो जाती है इसलिए उसकी उग्रता और और वह बन जाती है।
परमा का यह स्वरूप भक्तों को भयभीत करने के लिए नहीं होता प्रत्युत उसके दुष्कर्म का नाश करने के लिए होता है
चण्ड और मुण्ड नाम दैत्य एक दुष्प्रेरणा है जो शुभं निशुंभ के स्तुति गान में वे उसकी उसके सुंदर वस्तुओं के प्रति मोह अपहरण और बल की महिमा बखानतें हैं और एक दुष्कर्म के लिए प्रेरित करते हैं पर एक शक्ति के शुद्ध रूप को चामुंण्डा कहा जाता है चामुंण्डा का प्रखर तेजस्वी रूप चंण्डी कहलाता है।
मां के दुर्गा चामुंण्डा अथवा चंण्डी स्वरूप के समक्ष बैठकर इस का नित्य पाठ करने से पापक्षय होता है और साधक निर्मल व निर्भय होता है।
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