सदा वृन्दार कोद् वृन्दा ऽऽनन्द सन्दोह दायकम् ।
अमन्द मङ्गला गारं वन्दे शङ्कर नन्दनम् ॥
किं कार्यं कठिनं कुतः परिभवः कुत्रापवा दाद् भयं।
किं मित्रं न हि किन्नु राजसदनं गम्यं न विद्या च का॥
किं वाऽन्यज् जगती तले प्रवद यत्तेषाम सम्भावितं।
तेषां हृत्कमले सदा वसति सा तोष प्रदा सङ्कटा ॥
अयि गिरि नन्दिनि नन्दित मेदिनि
विश्व विनोदिनि नन्दि नुते
गिरि वर विन्ध्य शिरोऽधि निवासिनि
विष्णु विलासिनि जिष्णु नुते
भगवति हे शिति कण्ठ कुटुम्बिनि
भूरि कुटुम्भिनि भूति कृते
जय जय हे महिषा सुर मर्दिनि
रम्भ कपर्दिनि शैल सुते
सुरवर वर्षिणि दुर्धर धर्षिणि
दुर्मुख मर्षिणि हर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवन पोषिणि शङ्कर तोषिणि
कल्मष मोषिणि घोषरते
दनुज निरोषिणि दुर्गद शोषिणि
दुर्मुनि रोषिणि सिन्धु सुते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते
अयि जगदम्ब कदम्ब वन प्रिय
वासिनि तोषिणि हासरते
शिखरी शिरो मणि तुङ्ग हिमालय
श्रृङ्ग निजा लय मध्य गते
मधु मधुरेश मधु कैटभ गञ्जिनि
महिष विदारिणि रासरते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते
अयि निजहुँ कृति मात्र निराकृत
धूम्र विलोचन धूम्र शते
समर विशोषित रोषित शोणित
बीज समुद् भव बीज लते
शिव शिव शुम्भ निशुम्भ महा
हव तर्पित भूत पिशाच रते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते
अयि शतखण्ड विखण्डित रुण्ड
वितुण्डित शुण्ड गजाधि पते
निज भुज दण्ड निपा तित चण्ड
विपा टित मुण्ड भटा धिपते
रिपु गज गण्ड विदारण चण्ड
पराक्रम शौण्ड मृगाधि पते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते
धनु रनु षङ्ग रणक्षण सङ्ग
परिस् फुरदङ्ग नटत् कटके
कनक पिशङ्ग पृषत्क निषङ्ग
रसद् भट श्रृङ्ग हता बटुके
हत चतुङ्ग बल क्षिति रङ्ग
घटद् बहुरङ्ग रटद् बटुके
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते
अयि रण दुर्मद शत्रु बधाद्
धुर दुर्धर निर्भर शक्ति भृते
चतुर विचार धुरीण महाशय
दूत कृत प्रमथा धि पते
दुरित दुरीह दुराशय दुर्मति
दानव दूत दुरन्त गते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते
अयि शरणा गत वैरि वधूजन
वीर वरा भय दायि करे
त्रिभुवन मस्तक शुल विरोधि
शिरोधि कृता मल शूल करें
दुमि दुमिता मर दुन्दुभि नाद
मुहुर् मुखरी कृत दिङ्नि करें
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते
सुरल लना ततथे यित थेयित
थाभि नयो त्तर नृत्य रते
कुतकु कुथा कुकुथोदि डदाडिक
ताल कुहू हल गान रते
धुधु कुट धूधुट धिन्धि मित
ध्वनि घोर मृदङ्ग निनाद रते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते
जय जय जाप्य जये जय शब्द
परस्तुति तत्पर विश्व नुते
झण झण झिम् झिम झिम्कृत
नूपुर शिञ्चित मोहित भूत पते
नटि तनटार्ध नटी नट नायक
नाटन नाटित नाटय रते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते
अयि सुमनः सुमनः सुमनः
सुमनः सु मनोरम कान्ति युते
श्रितर जनी रजनी रजनी रजनी
रजनी कर वक्त्र भृते
सु नयन वि भ्रमर भ्रमर
भ्रमर भ्रमर भ्रमराभि दृते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते
महित महा हव मल्लम तल्लिक
वल्लित रल्लित भल्लि रते
विरचित वल्लि कपालिक पल्लिक
झिल्लिक भिल्लिक वर्ग वृते
श्रुतकृत फुल्ल समुल्ल सिता रुण
तल्लज पल्लव सल्ल लिते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते
अयि सुद तीजन लालस मानस
मोहन मन्थर राज सुते
अविरल गण्ड गलन् मद मे दुर
मत्त मत्तङ्ग जराज गते
त्रिभुवन भूषण भूत कला निधि
रूप पयो निधि राज सुते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते
कमल दला मल कोमल कान्ति
कला कलिता मल भाल तले
सकल विलास कला निलय क्रम
केलि चलत् कल हंस कुले
अलि कुल सङ्कुल कुन्तल मण्डल
मौलि मिलद् बकु लालि कुले
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते
कर मुरली रव वर्जित कूजित
लज्जित को किल मुञ्ज मते
मिलित मिलिन्द मनोहर गञ्जित
रञ्जित शैलनि कुञ्ज गते
निजगण भूत महाशबरी गण
रङ्गण सम्भृत केलि रते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते
कटि तट पीत दुकूल विचित्र
मयूख तिरस्कृत चण्ड रुचे
जित कनका चल मौलि मदोर्
जित गर्जित कुञ्जर कुम्भ कुचे
प्रणत सुरा ऽसुर मौलि मणि
स्फुरदं शुल सन्नख चन्द्र रुचे
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते
विजित सहस्त्र करैक सहस्त्र
करैक सहस्त्र करैक नुते
कृत सुरता रक सङ्ग रता रक
सङ्ग रता रक सूनु नुते
सुरथ समाधि समान समाधि
समान समाधि सुजाप्य रते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते
पदक मलं करुणा निलये वरि
वस्यति यो ऽनुदिनं सु शिवे
अयि कमले कमला निलये
कमला नइलयः से कथं न भवेत्
तव पदमेव परं पद मस्त्वि ति
शील यतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते
कनक लसत् कल शीक जलैर
नुषिञ्चति तेऽङ्गण रङ्ग भुवं
भजति स किं न शची कुच कुम्भ
नटी परि रम्य सुखा नु भवम्
तव चरणं शरणं कर वाणि
सुवाणि पथं मम देहि शिवं
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते
तव विमलेन्दु कलं वदनेन्दु
मलं कल यन्ननु कूल यते
किमु पुरुहूत पुरीन्दु मुखी
सुमुखी भिरसौ विमुखी क्रियते
मम तु मतं शिव मान धने
भवती कृपया किमु न क्रियते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते
अयि मयि दीन दयालु तया
कृतयैव त्वया भवित व्य मुमे
अयि जगतो जन नीति यथा
ऽसि मया ऽसि तथा ऽनुमतासि रमे
यदु चित मत्र भवत्पु रगं कुरु
शाम्भवि देवि दयां कुरु मे
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते
स्तुति मिमां स्तइमइतः सुसमाधिना
नियमतो यमतो ऽनुदितं पठेत्।
परमया रमया स निषेव्यते
परिजो ऽरि जनो ऽपि च तं भजेत् ॥
॥ इति सङ्कटा स्तुतिः समाप्ता ॥
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