सांख्यायन तन्त्र के प्रथम पटल में कहा गया है कि एक बार जब गौरी, वाल्मीकि, अष्टदिक्पाल, विघ्नेशाष्ट,भैरवाष्टक, मातृमण्डल, महापाशुपतास्त्र, आदि से घिरे हुए भगवान् शिव कैलास के शिखर पर बैठे हुए थे तब कुमार ने भगवान् शिव का नमन एवं स्तवन करते हुए उनसे कहा कि "हे भगवान् मैं आपका पुत्र भी हूँ और शिष्य भी" अतः कृपया आप चापचर्या में निपुण युद्धचर्या में भयानक तथा मायावी इन राक्षसों पर विजय प्राप्त करने के उपाय एवं तत् सम्बद्ध विद्या बताने की कृपा करें जिससे कि मैं राक्षसों से जीत सकूँ —
भगवान् शिव ने कहा कि यदि तुम राक्षसों पर विजय चाहते हो तो उन पर ब्रह्मास्त्र विद्या के बिना विजय पाना सम्भव नहीं है अतः मैं तुम्हें ब्रह्मास्त्रविद्या बताता हूँ ।
भगवती बगलामुखी की उपासना वैदिक रीति से ब्रह्मा ने की परिणाम स्वरूप वे सृष्टि रचना में समर्थ हो सके , ब्रह्मा ने अपने पुत्र सनक आदि को यह विद्या प्रदान की, सनत् कुमार ने इस विद्या को नारद को प्रदान किया, नारद ने इस विद्या को सांख्यायण को प्रदान किया, ऋषि सांख्यायन ने 36 पटलों में सांख्यायन तन्त्र के रूप में इस विद्या को पुस्तका कार स्वरूप प्रदान किया ।
(०१.) ब्रह्मा – सनक आदि ऋषि सनत्कुमार –नारद–सांख्यायन ।
(०२.) विष्णु – इस विद्या के द्वितीय उपासक भगवान् विष्णु हुए ।
(०३.) शिव – इस विद्या के तृतीय उपासक भगवान् शिव हुए ।
शिव ने इस ब्राह्मास्त्र विद्या को परशुराम को प्रदान किया, परशुराम ने इसे द्रोणाचार्य और द्रोणाचार्य ने अपने पुत्र अश्वत्थामा को प्रदान किया, परशुराम ने यह विद्या कर्ण को भी सिखाई थी ।
भगवान् शिव ने ही यह विद्या च्यवन मुनि को प्रदान की थी , उन्होंने च्यवन ऋषि ने अश्विनी कुमारों को यज्ञाधिकार प्रदान करने के समय इन्द्र के क्रोधित होने पर इसी विद्या से उनको वज्र को स्तम्भित कर दिया था ।
जहाँ तक स्तम्भन शक्ति की बात है तो मेघनाद ने लंका में हनुमान् की गति स्तम्भित कर दिया था अंगद ने रावण की सभा में अपने पैर को इसी प्रकार स्तम्भित कर दिया था, रणक्षेत्र में गिरे हुए लक्ष्मण को रावण द्वारा न उठा पाने का कारण भी यही स्तम्भण शक्ति थी।
भगवान् श्रीकृष्ण ने जयद्रथ के वध के लिए सूर्य को स्तम्भित कर दिया था, आचार्य गोविन्द पाद की समाधि में विघ्न डालने वाली रेवा नदी को आचार्य शंकर ने स्तम्भित कर दिया था, अङ्गुलिमाल डाकू दौड़कर तथागत बुद्ध पर आघात करने आ रहा था किन्तु बुद्धदेव की शक्ति से स्तम्भित हो उठा, ये समस्त स्तम्भन क्रियाएँ बगलामुखी शक्ति से ही सम्बद्ध हैं ।
ब्रह्मा के मानस पुत्र नारद ने मेरु कन्दरा में इसका उपदेश सांख्यायन को दिया तो भगवान् शिव ने इसका उपदेश क्रौंचभेदन को दिया,
भगवती बगलामुखी की उपासना :-
(०१.) वामाचार
(०२.) कौलाचार
(०३.) दक्षिणाचार
इन सभी आचारों से निष्पादित की जाती है किन्तु यह उपासना वामाचार एवं कौलाचार से अनुष्ठित होने पर सद्य: फलप्रद होती है, अन्यथा फलाप्ति में विलम्ब होता हैं ।
सांख्यायनतन्त्र में यह भी कहा गया है कि:—
ब्रह्मास्त्र विद्या को सत्सम्प्रदाय विधि सत्सम्प्रदाय विधि से सद्गुरु के मुख से एवं उपदेश क्रम से ही ग्रहण करके इसकी साधना करनी चाहिए, इतना ही नहीं इसे 'कुलमार्ग' की पद्धति से ग्रहण करणा चाहिए , इसकी साधना तर्पण एवं सतत पूजा द्वारा अनुष्ठित होनी चाहिए ।
बगलामुखी पञ्चाङ्ग (बगलापटल/बगलास्तोत्र/बगलाकवच/बगलाहृदय/बगलाशतनाम) सभी की विवेचना ब्रह्मास्त्र विद्या के परिचय में आवश्यक है ।
ब्रह्मास्त्रविद्या का मुख्य उद्देश्य ही वात्याचक्र के भयानक कोप का स्तम्भन दिया भगवती बगला ने प्रकट होकर वात प्रकोप को शान्त किया, यह वात निवारण स्तम्भनात्मिका ब्रह्मास्त्रविद्या द्वारा ही निष्पादित किया गया, जब हनुमान् जी सूर्य को निगल रहे थे तब इसी स्तमृभन विद्या द्वारा ही पवन देवता ने हनुमान् को रोका था।
मेघनाद ने लंका में हनुमान् को नागपाश में बाँधकर उनकी गति को इसी स्तम्भण विद्या द्वारा निरुद्ध किया था अंगद ने इसी स्तम्भण विद्या द्वारा रावन की सभा में अपने पैरों को इस प्रकार आरोपित किया कि कोइ भी वीर उसे हिला तक नहीं सका ।
भार्गव परशुराम ने ब्रह्मास्त्र विद्या कर्ण को प्रदान किया था और भगवान् शिव ने इस विद्या का उपदेश भार्गव परशुराम एवं च्यवन मुनि दोनों को प्रदान किया था और च्यवन मुनि ने अश्विनी कुमारों को यज्ञाधिकार प्रदान करने के अवसर पर और देवराज इन्द्र द्वारा वज्रास्त्र का प्रयोग करने की स्थिति में इस ब्रह्मास्त्र विद्या का प्रयोग वज्रास्त्र को रोकने के लिए किया था और महर्षि अगस्त्य ने इस विद्या का उपदेश भगवान् राम को दिया था और महर्षि सांख्यायन ने इस विद्या का साङ्गोपाङ्ग वर्णन सांख्यायनतन्त्र में किया है तथा अपने शिष्यों को इसका ज्ञान प्रदान किया था ।
स्तम्भन प्रयोग की दिशा में जयद्रथ वध के अवसर पर सूर्य की गति इसी विद्या से रोक दिया था रावन लक्ष्मण को इसी कारण नहीं उठा कर ले जा सका क्योंकि उनका शरीर स्तम्भित था , आचार्य शंकर ने रेवा नदी को इसी विद्या से स्तम्भित कर दिया था ।
ब्रह्मास्पत्र विद्या से सम्बद्ध प्रसिद्ध तन्त्र ग्रन्थ सांख्यायनतन्त्र में उपर्युक्त विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है कि इसे किसी अधिकारी गुरु से ही ग्रहण करना चाहिए तथा इसे किसी अधिकारी सत्पात्र छात्र को ही दिया जाना चाहिए, अन्यथा यह अनर्थकारी होगी —
ब्रह्मास्त्र विद्या की दीक्षा मन्त्रदान दीक्षा का अधिकारी गुरु वह होता है जिसमें निम्न लक्षण परिलक्षित होते हैं ।
गुरु विद्या की चाभी या द्वार है, विद्या प्राप्ति के द्वारों में गुरु भी एक द्वार है क्योंकि विद्यागम के निम्न द्वार हैं और उनमें गुरु प्रधान द्वार है
दीक्षागुरु कुलगुरु होना चाहिए और शिष्य को चाहिए कि वह गुरुपरम्परागत उपदेश क्रम से आदरपूर्वक मन्त्र ग्रहण करते हुए उस कुलगुरु परम्परागत साम्प्रदायिक विद्या प्राप्त करें —
अदीक्ष्य शिष्य का विद्या या मन्त्र ग्रहण एवं अपात्र गुरु द्वारा दीक्षा दान दोनों कर्म दोनों को पिशाच योनि में डाल देते हैं अतः गुरु भी अधिकारी होना चाहिए और शिष्य भी ।
यह ब्रह्मास्त्र विद्या त्रैलोक्य को स्तम्भित कर देने वाली विद्या है यह विष्णु तेज से पूर्ण है क्योंकि भगवती बगलामुखी स्वयमेव भगवती महात्रिपुरसुन्दरी एवं विष्णु के परम तेज का चमत्कार हैं
भाव यह कि कल्याण सम्पादनार्थ शत्रुओं को स्तम्भित करने हेतु ब्रह्मास्त्र स्वरूप बगलामुखी मन्त्र के विषय में प्रकाश डाला जा रहा है जो कि प्रयोग मात्र से परिणाम प्रदान करने लगता है और लोक प्रत्यय जनविश्वास को पुष्ट करता है इसके मन्त्र का स्मरण करणे मात्र से पवन स्थिर हो जाता है ।
रुद्रयामल तन्त्र में कहा गया है कि हे भगवती आपके मन्त्र के जप करने वाले व्यक्ति के समझ सारे वादी मूक बन जाते हैं, राजा दरिद्र बन जाते हैं, अग्नि शीतल बन जाती है, क्रोधियों का क्रोध भी शान्त हो जाता है, दुर्जन व्यक्ति भी मधुर बोलने लगता है, द्रुतगामी लँगड़ा जैसे हो जाता है , अहङ्कारी व्यक्ति का अहङ्कार ध्वस्त हो जाता है और सर्वज्ञ ज्ञानी भी जड़ बन जाता है ऐसी शाश्वतसत्ता, नित्य, पराशक्ति एवं कल्याणमयी भगवती बगलामुखी को मैं प्रतिदिन प्रणाम करता हूं ।
देवी बगलामुखी की साधना मुख्यतः शत्रुदमन के उद्देश्य से अनुष्ठित की जाती है, शत्रु कृत उपद्रव , तान्त्रिक षट्कर्म, अभिचार ( मारण, मोहन, उच्चारण , वशीकरण, स्तम्भन , द्वेषण आदि ) वाद विवाद, मुकदमा आदि समस्याओं के निराकरणार्थ इस बगला के मन्त्र की अधिक साधना की जाती है ।
साधना द्वारा पहने गये वस्त्र, उसकी माला, उसका आसन , देवी को समर्पणार्थ लिये गये फूल, भोजन सामग्री , फल , समस्त नैवेद्य, अधोवस्त्र, उत्तरीय तथा साधनास्थान सभी पीले रंग के हों । क्योंकि देवी स्वतः पीतवर्णा, पीताम्बरा , पीतमालावृत, पीताभरणा आदि हैं ।
पुस्तके लिखितान मन्त्रान् अवलोक्य जपन्ति ये ।
स जीवन्नेव चाण्डालो मृतः श्वानो भविष्यति ।।
दीक्षा गुरु भी योग्य हो अन्यथा पिशाचत्व की प्राप्ति होगी
सर्व प्रथम किसी शुभ तिथि का सन्धान करके सोने , चाँदी या ताँबें के पत्तर पर बगलामुखी यन्त्र की रचना की जानी चाहिए, यन्त्र उभरे रेखाङ्कन द्वारा निर्मित होना चाहिए, यन्त्र तैयार हो जाय तो उसकी प्राण प्रतिष्ठा करके उसकी शास्त्रोक्त विधि से पूजा करनी चाहिए ।
Social Plugin