भगवती का पञ्चोपचार, षोडशोपचार, षट्त्रिंशदुपचार , आदि अनेक उपचारों से पूजन किया जाता हैं । पूजन के समय तत्सम्बद्ध श्लोक या मन्त्रों का भी प्रयोग करना चाहिए ।
विशेष ध्यातव्य — यदि वेदों में महामहिमान्वित श्री सूक्त के मन्त्रों का प्रयोग करते हुए भगवती बगलामुखी का उपचारात्मक पूजन किया जाय तो सर्वोत्तम रहेगा
श्री सूक्त के मन्त्रों द्वारा षोडशोपचार पूजन
(०१.) आवाहन
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्ण रजतस्त्र जाम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो मऽआवह ।।
हे वेदों को प्रकट करने वाले अग्निदेव स्वर्णकान्तिमती, हरितवर्णाभा , हरिणीरूपा , स्वर्ण एवं रजत के पुष्पों की माला धारण करने वाली, समस्त प्राणियों को चन्द्रमावत् प्रकाशित करने वाली , हिरण्यरूप वाली लक्ष्मी का अभीष्ट सिद्धयर्थ आह्वान कीजिए ।
(०२.) आसन
तां मऽआवह जातवेदो लक्ष्मीमन पगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषा नहम् ।।
हे जातवेद ( अग्नि ) उस कभी दूर न होने वाली लक्ष्मी का मेरे लिए आह्वान कीजिए, जिसके आने पर मैं स्वर्ण, गौ ( पशु ) अश्व ( वाहन ) एवं पुरुष ( पुत्र , मित्र , परिवार ) प्राप्त करूँ ।
(०३.) पाद्य
अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद प्रबोधिनीम् ।
श्रियं देवी मुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ।।
जिसके अग्रभाग में अश्व हो जिसके मध्य भाग में रथ हो तथा हाथियों की चिंग्घाड़ से सबको बोधित करने वाली ऐसी देवी ( क्रीड़ापरायणा ) लक्ष्मी का मैं आह्वान करता हूँ । वह देवी ( प्रकाशात्मा ) लक्ष्मी मुक्षको सेवित करें ।
(०४.) अर्घ्य
कां सोस्मितां हिरण्य प्राकारा मार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ।।
ब्रह्मस्वरूपिणी उत्कृष्ट एवं मन्द हास्य से युक्त, स्वर्णावरण वाली, शीतल प्रकृति वाली , ज्योतिःस्वरूपा , पूर्णाकामा , भक्तों की तृप्तिदात्री ,कमलासनस्था , पद्मवर्णा उन लक्ष्मी का यहाँ आह्वान करता हूँ ।
(०५.) आचमनीय
चन्द्रां प्रभासां यशयां ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टा मुदाराम् ।
तां पद्मिनीमीं शरणं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणोमि ।।
मैं चन्द्रोपमा ( आह्लादकारिणी ) अत्यन्त दीप्तिमती, जगत् में उदार प्रकृतिक कमलाकृति वाली ईकार से वाच्य उस लक्ष्मी की शरण में जाता हूँ मेरी दरिद्रता नष्ट हो अतः तुम्हें वरण करता हूँ ।
(०६.) स्थानीय
आदित्य वर्णों तपसो ऽधिजातो वनस्पति स्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरा याश्च बाह्या ऽलक्ष्मीं ।।
हे सूर्य के समान कान्ति वाली लक्ष्मी आपकी तपस्या से ही मङ्गल स्वरूप बिल्व नाम की वनस्पति ( अन्य ) वृक्ष उत्पन्न हुआ , उस बिल्व के फल तपश्चर्याओं के द्वारा अज्ञान एवं विघ्नों तथा बाह्येन्द्रियों से समुद्भूत दरिद्रताओं को भी दूर करें ।
(०७.) पञ्चामृत
उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतो ऽस्मि राष्ट्रे ऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ।।
मुक्षे भगवान् महादेव के सखा कुबेर और चिन्तामणि के साथ कीर्ति प्राप्त हो। मैं इस राष्ट्र में उत्पन्न हुआ हूँ , वे मुझे कीर्ति एवं ऋद्धि समृद्धि प्रदान करें ।
(०८.) वस्त्र
क्षुत्पिपासा मलां ज्येष्ठाम् लक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिम समृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात् ।।
मैं भूख एवं प्यास से मलिन लक्ष्मी से पूर्वोतपन्न ( अग्रज ) अलक्ष्मी को नष्ट करता हूँ । आप मेरे घर से सभी प्रकार की अभूति ( अनैश्वर्य ) एवं समृद्धि के अभाव को दूर कीजिए ।
(०९.) गन्ध
गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम् ।।
मैं सुगन्धवती , दुःसहा, नित्य समृद्धिशालिनी , शुष्क गोमय आदि से सम्मानित, समस्त प्राणियों को स्वामिनी उन भगवती महालक्ष्मी को इस प्रदेश में बुलाता हूँ ।
(१०.) अक्षत
मनसः काममाकूतिं वाचः सत्य मशी महि ।
पशूनां रूपमन्नस्य मति श्रीः श्रयतां यशः ।।
हम मन की कामनाओं के सङ्कल्पों को वाणी की यथार्थता को, पशुओं एवं अन्न के स्वरूप को प्राप्त करें । मुझे सम्पत्ति और कीर्ति प्राप्त हो ।
(११.) पुष्प
कर्दमेन प्रजाभूता मयि सम्भाव कर्दम ।
श्रियं वाह्य मे कुले मातरं पद्म मालिनीम् ।।
भगवती लक्ष्मी कर्दम नामक ऋषि के द्वारा ही पुत्रवती हैं अतः हे कर्दम ऋषि आप मेरे घर में समुत्पन्न होइए आप पद्ममाला धारिणी माता लक्ष्मी को मेरे वंश में निवास कराइए ।
(१२.) धूप
आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे ।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ।।
जल मेरे लिए स्निग्ध पदार्थ उत्पन्न करे । हे चिक्लीत ऋषि आप मेरे घर में निवास कीजिए और जगन्माता प्रकाशात्मिका भगवती लक्ष्मी को भी मेरे वंश में निवास कराइए ।
(१३.) दीप
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्म मालिनीम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ।।
हे अग्निदेव आप आर्द्र गन्धवाली पुष्टिकरी पुष्टिस्वरूपा, पीतवर्णा, अरविन्द धारिणी, आह्लादिनी स्वर्णमयी महालक्ष्मी का मेरे लिए आह्वान कीजिए ।
(१४.) नैवेद्य
आर्द्रां यष्करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेम मालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जात वेदो म आवह ।।
हे अग्निदेव आप स्नेहमयी यशवर्द्धिनी, वेत्रहस्त्रा , दण्डस्वरूपा , पूज्या, काञ्चनवर्णा , स्वर्णमाला धारिणी , ऐश्वर्यमयी , स्वर्णमयी लक्ष्मी का मेरे लिए आह्वान कीजिए ।
(१५.) ताम्बूल
तां मऽआवह जातवेदो लक्ष्मीमन पगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान्विन्देयं पुरुषानहम् ।।
हे अग्निदेव आप सदा स्थिरस्वभावा उन लक्ष्मी देवी का मेरे लिए आह्वान कीजिए जिसके आने पर मैं प्रचुर स्वर्ण धन , गायें , दासियाँ , अश्व एवं सेवक प्राप्त करूँ ।
(१६.) दक्षिणा
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्य मन्वहम् ।
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ।।
जो लक्ष्मी प्राप्ति की कामना रखता हो वह पवित्र, संयमी होकर प्रतिदिन घृत का हवन करें और श्री सूक्त की पन्द्रह ऋचाओं का निरन्तर जप करता रहे ।
भगवती का आवाहन
बिना निमन्त्रण , आमन्त्रण एवं आवाहन के कोई भी व्यक्ति नहीं आता अतः साधक को चाहिए कि वह भगवती महामाया बगलामुखी का आवाहन करें ।
आवाहन मन्त्र
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्ण रजतस्त्र जाम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो मऽआवह ।।
आगच्छेह महादेवि सर्व सम्पत् प्रदायिनि ।
यावद् व्रतं समाप्येत तावत्त्वं सन्निधा भव ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः आवाहनं समर्पयामि ।
इस श्लोक को पढ़कर भगवती का आवाहन करना चाहिए ।
स्वागत — इसके बाद भगवती का स्वागत मन्त्र पढकर उनका स्वागत करना चाहिए ( स्वागत मन्त्र आगे लिखा हुआ है )
आसन मन्त्र
तां मऽआवह जातवेदो लक्ष्मीमन पगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषा नहम् ।।
प्रसीद जगतां मातः संसारार्णव तारिणी ।
मया निवेदितं भक्त्या आसनं सफलं कुरु ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः आसनं समर्पयामि ।
पढ़कर भगवती को आसन दिया जाना चाहिए ।
पाद्य मन्त्र
अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद प्रबोधिनीम् ।
श्रियं देवी मुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ।।
गङ्गादि सर्वतीर्थेभ्यो मया प्रार्थनया हृतम् ।
तोयमे तत् सुखस्पर्शं पाद्यार्थं प्रतिगृह्यताम् ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः पाद्यं समर्पयामि ।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः कुङ्कुमं समर्पयामि ।
ऐसा कहकर भगवती बगलामुखी को कुंकुम रोली चढ़ाना चाहिए
मनसः काममाकूतिं वाचः सत्य मशी महि ।
पशूनां रूपमन्नस्य मति श्रीः श्रयतां यशः ।।
अक्षतान् निर्मलान् शुद्धान् मुक्ताफल समन्वितान ।
गृहाणे मान् महादेवि देहि मे निर्मलां धियम् ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः अक्षतान् समर्पयामि ।
ऐसा कहकर उपासक को चाहिए कि वह भगवती को अक्षत चढ़ाये ।
अर्घ्य मन्त्र
कां सोस्मितां हिरण्य प्राकारा मार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ।।
निधीनां सर्व देवानां त्वमनर्घ्यं गुणा ह्यसि ।
सिंहोपरि स्थिते देवि गृहाणा ऽर्घ्यं नमोऽस्तु ते ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः अर्घ्यं समर्पयामि ।
यह पढ़कर साधक भगवती को अर्घ्य समर्पित करें ।
आचमन मन्त्र
चन्द्रां प्रभासां यशयां ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टा मुदाराम् ।
तां पद्मिनीमीं शरणं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणोमि ।।
कर्पूरेण सुगन्धेन सुरभि स्वादु शीतलम् ।
तोयमाचमनीयार्थं देवीदं प्रतिगृह्यताम् ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः आचमनीयं समर्पयामि ।
यह पढ़कर भगवती को आचमनीयं समर्पित किया जाना चाहिए।
स्नान — इसके अनन्तर भगवती को स्नान मन्त्र पढ़कर स्नानार्थ जल समर्पित करना चाहिए । स्नानोपरान्त भगवती को पञ्चामृत से स्नान करना चाहिए ।
पञ्चामृत स्नान मन्त्र
उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतो ऽस्मि राष्ट्रे ऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ।।
पयो दधि घृतं चैव मधु शर्करया ऽन्वितम् ।
पञ्चामृतं मयाऽऽनीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः पञ्चामृत स्नानं समर्पयामि ।
इस प्रकार पढ़ कर भगवती को स्नानार्थ पञ्चामृत समर्पित करना चाहिए। इसके अनन्तर भगवती को उद्वर्तन ( उबटन ) स्नान हेतु देना चाहिए। उद्वर्तन देने के बाद वस्त्रोपवस्त्र, उसके पश्चात् गन्ध समर्पित करना चाहिए ।
गन्ध मन्त्र
गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम् ।।
मलया चल सम्भूते चन्दना गुरु सम्भवम् ।
विलेपनं च देविशि चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः गन्धं समर्पयामि
कहकर भगवती को गन्ध समर्पित करना चाहिए । भगवती को सौभाग्य सूत्र अर्पित करते समय यह श्लोक पढ़ना चाहिए।
सौभाग्य सूत्र मन्त्र
सौभाग्य सूत्रं वरदे सुवर्ण मणि संयुतम् ।
कण्ठे बध्नामि देवेश सौभाग्यं देहि मे सदा ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः सौभाग्य सूत्रं समर्पयामि
यह कहकर भगवती को सौभाग्य सूत्र अर्पित करना चाहिए ।
हरिद्रा मन्त्र
हरिद्रा रञ्जिता देवि सुख सौभाग्य दायिनि ।
तस्मात्त्वं पूजयाम्यत्र दुःख शान्तिं प्रयच्छ मे ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः हरिद्रा समर्पयामि ।
यह कहकर देवी को हरिद्रा चूर्ण अर्पित करना चाहिए ।
पुष्पमाला मन्त्र
कर्दमेन प्रजाभूता मयि सम्भाव कर्दम ।
श्रियं वाह्य मे कुले मातरं पद्म मालिनीम् ।।
पद्म शङ्खज पुष्पादि शतपत्रैर् विचित्रताम् ।
पुष्पमालां प्रयच्छामि ते श्रीपीताम्बरे शिवे ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः पुष्पमालां समर्पियामि ।
स्वागत — भगवती के आह्वानानन्तर उनका स्वागत करना चाहिए एतदर्थ ६ पीले पुष्प ( चम्पा आदि में से कोई भी पीले पुष्प ) लेकर उनका मन्त्र पढ़कर उनके चित्र या मूर्ति पर चढ़ा देना चाहिए —
स्वागतं ते महामाये चण्डिके सर्वमङ्गले ।
पूजा गृहाण विविधां सर्व कल्याण कारिणि ।।
स्थिरीकरण — भगवती के आह्वानान्तो परान्त उनके पधारने पर उनको स्थिरता पूर्वक आसन ग्रहण करके आसीन रहने हेतु, स्थिरीकरण हेतु निवेदन करते हुए एवं प्रतिमा पर मन्त्र सहित पुष्प चढाते हुए कहना चाहिए कि —
ॐ देवेशि भक्ति सुलभे परिवार समन्विते ।
यावत्त्वां पूजयिष्यामि तावत्त्वं सुस्थिरा भव ।।
आसन — भगवती के स्थैर्यपूर्वक उपस्थित रहते हेतु निवेदन किये जाने के उपरान्त साधक को उनके बैठने हेतु उन्हे़ आसन प्रदान करते हुए उनसे बैठने हेतु निवेदन करना चाहिए और मन्त्र पढ़कर पीत पुष्प देवी के चरणों पर चढ़ाते हुए प्रार्थना करनी चाहिए —
ॐ आसनं भास्वरं तुङ्गं माङ्गल्यं सर्वमङ्गले ।
भजस्व जगतां मातः प्रसीद जगदीश्वरी ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः आसनं समर्पयामि ।
पाद्य — इसके अनन्तर भगवती के पाद प्रक्षालनार्थ पाद्य पात्र के जल में पीली चमेली का पुष्प ( न मिलने पर कोई भी पीत पुष्प ) केशर , गोरोचन डालकर मन्त्र पढ़कर निम्न श्लोक का वाचन करके देवी से निवेदन करें कि —
ॐ गङ्गादि सलिलाधारं तीर्थं मन्त्राभि मन्त्रितम् ।
दूरयात्रा श्रमहरं पाद्यं तत्प्रति गृह्यताम।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः पादयोः पाद्यं समर्पयामि
उद्वर्तन — इसके अनन्तर साधक को चाहिए कि वह भगवती को मैदा, हरिद्रा चूर्ण एवं सुगन्धित तेल मिश्रित लेप बनाकर मन्त्र पढ़कर इस प्रकार उन्हें समर्पित करें —
ॐ तिल तैल समायुक्तं सुगन्धि द्रव्यनिर् मितम्।
उद्वर्तन मिदं देवि गृहाण त्वं प्रसीद मे ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः उद्वर्तनं समर्पयामि ।
अर्घ्य — इसके अनन्तर भगवती के सम्मानार्थ अर्घ्यपात्र के जल में तिल , दुर्वा , अक्षत , पीत पुष्प, कुशाग्रभाग एवं पीली सरसों डालकर उन्हें निम्न मन्त्र पढ़कर भगवती को समर्पित कर देना चाहिए —
ॐ तिल तण्डुल संयुक्तं कुश पुष्प समन्वितम् ।
सुगन्ध फल संयुक्त मर्घ्यं देवि गृहाण मे ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः हस्तयोः अर्घ्यं समर्पयामि
आचमनीय — आचमनार्थ प्रयुक्त पञ्चपात्रों में जल लेकर और उसमें लौंग जायफल एवं ककोल का चूर्ण मिश्रित करके और निम्नाङ्कित मन्त्र पढ़कर उसे भगवती को समर्पित कर देना चाहिए —
ॐ स्नानादिकं विधायापि यतः शुद्धिरवा प्यते ।
इदमाचमनीयं हि पीताम्बरायै देवि प्रह्यताम् ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः आचमनीयं समर्पयामि
स्थानीय — भगवती के स्नानार्थ एकत्रित जल में केशर एवं गोरोचन डालते हुए उसे सौरभित करके उसे यह मन्त्र पढ़ते हुए भगवती को सादर समर्पित करना चाहिए —
ॐ स्वमापः पृथिवी चैव ज्योतिषं वायुरेव च ।
लोक संसृमृति मात्रेण वारिणा स्नापयाम्यहम् ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः स्नानं समर्पयामि ।
अष्टाङ्ग अर्घ्य — निम्नांकित मन्त्र पढ़कर भगवती को अर्घ्य समर्पित करना चाहिए —
ॐ जगत्पूज्ये त्रिलोकेशि सर्वदानवभञ्जिनि ।
अष्टाङ्गा अर्घ्यं गृहाण त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः अष्टाङ्गा अर्घ्यं समर्पयामि।
मधुपर्क — अर्घ्यानन्तर देवी को मधुपर्क प्रस्तुत करना चाहिए। एक शुद्ध कांस्य पात्र में शुद्ध घृत , शुद्ध मधु एवं शुद्ध दही लेकर उसे भगवती को निम्न मन्त्र पढ़कर सादर समर्पित करना चाहिए
ॐ मधुपर्क महादेवि ब्रह्माद्यैः कल्पितं तव ।
मया निवेदितं भक्त्या गृहाण गिरिपुत्रिके ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः मधुपर्कं समर्पयामि ।
आचमनीय ( द्वितीय आचमनीय ) — मधुपर्क समर्पण के अनन्तर निम्नाङ्कित मन्त्र पढ़कर भगवती को पुनः आचमनार्थ जल प्रदान करना चाहिए —
ॐ स्नानादिकं पुरः कृत्वा पुनः शुद्धिरवाप्यते ।
पुनराचमनीयं च बगले देवि गृह्यताम् ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः पुनराचमनीयं समर्पयामि ।
श्वेत चन्दन — अब भगवती को निम्न मन्त्र पढ़कर श्वेत चन्दन समर्पित करना चाहिए —
ॐ मलयाचल सम्भूतं नानागन्ध समन्वितम् ।
शीतलं बहुलामोदं चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः श्वेत चन्दनं समर्पयामि ।
रक्त चन्दन — भगवती को श्वेत चन्दन समर्पित करने के उपरान्त उन्हें निम्न श्लोक पढ़कर रक्तचन्दन अर्पित करना चाहिए —
ॐ रक्तानुलेपनं देवि स्वयं देव्या प्रकाशितम् ।
तद् गृहाण महाभागे शुभं देहि नमो ऽस्तु ते ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः रक्तचन्दनं समर्पायामि ।
सिन्दूर — अब भगवती को निम्न मन्त्र पढ़कर सिन्दूर अर्पित करना चाहिए —
ॐ सिन्दूरं सर्वसाध्वी नां भूषणाय विनिर्मितम् ।
गृहाण वरदे देवि भूषणानि प्रयच्छ मे ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः सिन्दूरं समर्पयामि ।
कुम्कुम — निम्न मन्त्र पढ़कर भगवती को कुम्कुम अर्पित करना चाहिए —
ॐ जटा पुष्प प्रभं रम्यं नारीभाल विभूषितम् ।
भास्वरं कुङ्कुमं रक्तं देवि दत्तं प्रगृह्य मे ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः कुङ्कुमं समर्पयामि ।
अक्षत — कुङ्कुम अर्पित करने के अनन्तर निम्न मन्त्र पढ़कर भगवती को अक्षत अर्पित करना चाहिए —
ॐ अक्षतं धान्यजं देवि ब्रह्मणा निर्मितं पुरा ।
प्राणदं सर्वभूतानां गृहाण वरदे शुभे ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः अक्षतान समर्पयामि ।
पुष्प — अक्षतार्पणो परान्त साधक को निम्न मन्त्र पढ़कर भगवती को पुष्पार्पण करणा चाहिए —
ॐ चलत्परि मला मोदी त्तालि गण सङ्कुलम् ।
आनन्द नन्दनोभ्दूतं बगलायै कुसुमं नमः ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः पुष्पाणि समर्पयामि ।
बिल्वपत्र — पुष्पार्पणो परान्त उपासक को निम्न मन्त्र पढ़कर भगवती को बिल्वपत्र अर्पित करना चाहिए —
ॐ अमृतोद्भ वश्रीवृक्षं शङ्कस्य सदा प्रियम् ।
पवित्रं ते प्रयच्छामि सर्व कार्यार्थ सिद्ध ये ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः बिल्वपत्राणि समर्पयामि।
पुष्पमाला — साधक को चाहिए कि वह करवीर या पीली चमेली के पुष्पों की माला निर्मित करके निम्न मन्त्रों द्वारा भगवती को यह माला अर्पित करें —
वस्त्र ( अधोवस्त्र ) — पुष्पमालार् पणोपरान्त भगवती को कौषेय आदि सुन्दर वस्त्र अर्पित करते हुए यह मन्त्र पढ़ना चाहिए —
ॐ तन्तुतन् त्वान संयुक्तं कलाकौशल कल्पितम् ।
सर्वा भरण श्रेष्ठं च वसनं परि धीयताम् ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः वस्त्रं समर्पयामि ।
द्वितीय वसन ( उत्तरीय वस्त्र ) — प्रथम वसनोपरान्त भगवती को निम्न मन्त्र पढ़कर द्वितीय वसन अर्पित करना चाहिए —
ॐ यामाश्रित्य महादेवि जगत्संहारकः सदा ।
तस्यै ते परमेशान्यै कल्पयाम्यु त्तरीयकम् ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः उत्तरीयवस्त्रं समर्पयामि ।
आभरण — इसके अनन्तर उपासक को निम्न मन्त्र पढ़कर भगवती को धातु या पुष्प के आभरण समर्पित करने चाहिए —
ॐ सौवर्णादि अलङ्कार कङ्कणादि विभूषितम् ।
हार केयूर युक्तानि नृपुराणि गृहाण मे ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः आभरणानि समर्पयामि ।
वस्त्रोपवस्त्र —
क्षुत्पिपासा मलां ज्येष्ठाम् लक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिम समृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात् ।।
पट्टकूल युगं देवि कञ्चुकेन समन्वितम् ।
परिधेहि कृपां कृत्वा मातः श्रीबगलामुखी।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः वस्त्रोपवस्त्राणि समर्पयामि।
कहकर भगवती को सादर वस्त्र समर्पित करना चाहिए
धूपबत्ती —
आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे ।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मेे कुले ।।
वनस्पति रसोद्भूतो गन्धाढयो गन्ध उत्तमः ।
आघ्रेयः सर्व देवानां धूपो ऽयं प्रति गृह्यताम् ।।
ऐसा कहकर भगवती को धूप अर्पित करना चाहिए या तो आभरण समर्पण के बाद उपासक को निम्न मन्त्र पढ़ते हुए भगवती को धूप अर्पित करना चाहिए ।
ॐ गुग्गुलं घृतसंयुक्तं नाना भक्ष्यैश्च संयुतम् ।
दशाङ्गं गृह्यतां धूपं बगलादेवि नमोऽस्तु ते ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः धूपमाघ्रापयामि।
दीप ( नीराजना ) — शुद्ध आज्य का दीपक प्रज्वलित करके निम्न मन्त्र से इसे अपनी आराध्या भगवती को सादर अर्पित करना चाहिए —
ॐ मार्तण्ड मण्डलान्तस्थ चन्द्र बिम्बाग्नि तेजसाम् ।
विधानं देवि बगले दीपोऽयं निर्मितस् तव ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः दीपं दर्शयामि ।
सौरभित द्रव्य — निम्नाङ्कित श्लोक पढते हुए भगवती को इत्रादिक वस्तु प्रस्तुत करनी चाहिए —
ॐ परमानन्द सौरम्यं परिपूर्णं दिगम्बरम् ।
गृहाण सौरभं दिव्यं कृपया जगदम्बिके ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः सुगन्धितद्रव्यं समर्पयामि ।
कर्पूर दीप — सौरभित द्रव्यार्पण के बाद उपासक को चाहिए कि वह निम्न मन्त्र पढ़ते हुए भगवती को कर्पूर जलाकर उनकी नीराजना करें —
ॐ त्वं चन्द्र सूर्ययो र्ज्योतिर् विद्युदग्न्योस् तथैव च ।
त्वमेव जगतां ज्योतिर् दीपों ऽयं प्रतिगृह्यताम् ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः कर्पूरदीपं समर्पयामि ।
नैवेद्य — उपासक को चाहिए कि वह निम्न मन्त्र पढ़ते हुए थाली में पूर्ण भोजन रखकर भगवती को अर्पित करें —
ॐ दिव्यान्न रस संयुक्तं नाना भक्ष्यैस्तु संयुतम् ।
चोष्य पेय समायुक्त मन्नं देवि गृहाण मे ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः नैवेद्यं समर्पयामि ।
अथवा —
आर्द्रां यष्करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेम मालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जात वेदो म आवह ।।
अन्नं चतुर्विधं स्वादुरसैः षड्भिः समन्वितम् ।
नैवेद्यं गृह्यातां देवि भक्तिं मे ह्यचलां कुरु ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः नैवेद्यं समर्पयामि ।
पायस — नैवेद्योपरान्त निम्न मन्त्र पढ़कर भगवती को पायस ( खीर ) अर्पित करना चाहिए —
ॐ गव्यसर्पिः पयोयुक्तं नाना मधुर मिश्रितम् ।
निवेदितं मया भक्त्या परमान्नं प्रगृह्यताम् ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः पायसं समर्पयामि ।
मोदक — पायसार्पणो परान्त उपासक को भगवती के लिए मोदक अर्पित करते हुए निम्नांकित मन्त्र पढ़ना चाहिए —
ॐ मोदकं स्वादु रुचिरं कर्पूरादिभि रन्वितम ।
मिश्रं नाना विधैर्द्रव्यैः प्रतिगृह्याशु भुज्यताम् ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः मोदकं समर्पयामि ।
अपूप — साधक को चाहिए कि वह भगवती के प्रीत्यर्थ निम्न मन्त्रपूर्वक उन्हें मालपुआ अर्पित करे —
ॐ अपूपानि च पक्वानि मण्डका वटकानि च ।
पायसा पूपमन्नं च नैवेद्यं प्रति गृह्यताम् ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः अपूपानि समर्पयामि ।
फल — अपूपोपरान्त भगवती को मधुर एवं दिव्य फल प्रदान करते हुए निम्न मन्त्र पढ़कर उनसे यह निवेदन करना चाहिए —
ॐ फलमूलानि सर्वाणि ग्राम्या ऽरण्यानि यानि च ।
नाना विध सुगन्धीनि गृहाण देवि ममा चिरम् ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः फलं समर्पयामि ।
पानीय — इसके उपरांत उपासक को भगवती को सौरभित जल अर्पित करते हुए निवेदन करना चाहिए —
ॐ पानीयं शीतलं स्वच्छं कर्पूरादि सुवासितम् ।
भोजने तृप्ति कृद्यस्मात कृपया प्रतिगृह्यताम् ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः पानीयं समर्पयामि ।
करोद्वर्तन जल — केवड़ा कर्पूर से सुगन्धित जल को एक पात्र में लेकर उसे निम्न मन्त्र पूर्वक भगवती को अर्पित करना चाहिए —
ॐ आमोद वस्तु सुरभि कृत मेत दनुत्त मम् ।
गृहाणा चमनीयं त्वं मया भक्त्या निवेदितम् ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः आचमनीयं समर्पयामि।
ताम्बूल — निम्नांकित मन्त्र पढ़कर भगवती को सुगन्धित एवं मधुर पान देते हुए निवेदन करना चाहिए —
ॐ पूगी फलं महाद्दिव्यं नागवल्ली दलैर्युतम् ।
कर्पूरैला समायुक्तं ताम्बूलं प्रति गृह्यताम ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः ताम्बूलं समर्पयामि ।
काजल — साधक को चाहिए कि वह निम्न मन्त्र पढ़ते हुए भगवती को कज्जल समर्पित करते हुए सादर अनुरोध करें —
ॐ स्निगधमुष्णं हृद्यतमं दृशां शोभाकरं तव ।
गृहीत्वा कज्जलं सद्यो नेत्राण्यञ्जय बगुले ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः कज्जलं समर्पयामि ।
चक्षुर्भ्यां कज्जलं रम्यं सुभगे शान्ति कारके ।
कर्पूर ज्योति रुत्पन्नं गृहाण बगलामुखि ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः कज्जलं समर्पयामि ।
सौवीराञ्जन ( सुरमा ) — उपासक निम्न मन्त्र पढ़कर भगवती को सौवीराञ्जन अर्पित करते हुए निवेदन करें —
ॐ नेत्रत्रय महामाये भषयामल कज्जलेः ।
सुसौवीराञ्ज नैर्दिव्यैर्जगदम्ब नमो ऽस्तु ते ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः सौवीराञ्जनं समर्पयामि ।
अलक्तक ( आलता द्रव्य ) — उपासक को चाहिए कि वह निम्न मन्त्र पढ़कर भगवती को अलक्तक समर्पित करें —
ॐ त्वत्पदाम् भोजन खरद्युति कारि मनोहरम् ।
अलक्तकमिदं देवि मया दत्तं प्रगृह्य ताम् ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः अलक्तक द्रव्यं समर्पयामि ।
चामर — उपासक भगवती को चामर देते हुए और उन्हें चामर से हवा करते हुए निम्न मन्त्र पढ़े —
ॐ चामरं चमरी पुच्छं हेमदण्ड समन्वितम् ।
मयार्पितं राजचिह्नं चामरं प्रतिगृह्यताम् ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः चामरं समर्पयामि ।
व्यजन — इसके उपरान्त उपासक को चाहिए कि वह निम्न मन्त्र पढ़ते हुए और प्रार्थना करते हुए भगवती को सादर व्यजन अर्पित करें —
ॐ बर्हिबर्ह कृताकारं मध्य दण्ड समन्वि तम् ।
गृह्यतां व्यजनं बगले देह स्वेदाप नुक्तये ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः व्यजनं समर्पयामि ।
घण्टावाद्य — अब उपासक ( भक्त ) निम्न मन्त्र पढ़कर घण्टा वादन करे —
ॐ यथा भीषयसे दैत्यान् यथा पूरयसे ऽसुरमा ।
तां घण्टां सम्प्रयच्छामि महिषघ्नि प्रसीद मे ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः घण्टावाद्यं समर्पयामि ।
दक्षिणा —
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्य मन्वहम् ।
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ।।
पूजाफल समृद्धयर्थं तवाग्रे स्वर्ण मीश्वरि ।
स्थापति ते च प्रीत्यर्थं पूर्णान् कुरु मनोरथान् ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः दक्षिणां समर्पयामि ।
यह कहकर दक्षिणा अर्पित करनी चाहिए ।
अथवा — भगवती को दक्षिणा अर्पित करते हुए निम्न मन्त्र पढ़ना चाहिए —
ॐ काञ्चनं रजतो पेतं नाना रत्न समन्वितम् ।
दक्षिणार्थं च देवेशि गृहाण त्वं नमोऽस्तु ते ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः दक्षिणां समर्पयामि ।
पुष्पाञ्जलि — दक्षिणा देने के उपरान्त उपासक को भगवती को पुष्पाञ्जलि अर्पित करते हुए निम्न मन्त्र पढना चाहिए —
ॐ नाना सुगन्धि पुष्पाणि यथा कालोद्भवानि च ।
पुष्पाञ्जलिर् मया दत्ता गृहाण बगलामुखि ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि ।
कहकर भगवती को पुष्पाञ्जलि अर्पित करना चाहिए।
नीराजना — पुष्पाञ्जलि अर्पित करने के अनन्तर उपासक को चाहिए कि वह निम्न मन्त्र पढ़कर भगवती को नीराजना करे —
ॐ कर्पूर वर्ति संयुक्तं वह्निना दीपितं च यत् ।
नीराजनं च देवेशि गृह्यतां जगदम्बिके ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः नीराजनं समर्पयामि ।
अच्छिद्राव धारण — इसके उपरान्त निम्न मन्त्र पढ़कर देवी को अच्छिद्राव धारण कराये —
ॐ बगलामुखी महामाये येषां पूजा मया कृता ।
अच्छिद्रास्तु शिवे साङ्गं तव देवि प्रसादतः ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः अच्छिद्रावधारणं समर्पयामि।
प्रदक्षिणा —
यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च ।
तानि सर्वाणि नश्यन्ति प्रदक्षिणा पदे पदे ।।
ह्रीं बगलामुखी देव्यै नमः प्रदक्षिणा समर्पयामि ।
कहकर भगवती की प्रदक्षिणा की जानी चाहिए ।
क्षमायाचना — साधक को चाहिए कि वह अन्त में भगवती से अपने अपराधों भूलों एवं प्रमादों के लिए क्षमा याचना करते हुए कहे —
अपराध सहस्त्राणि क्रियन्ते ऽहर्निशं मया।
दासो ऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ।।
हे परमेश्वरी मेरे द्वारा रात दिन सहस्त्रो अपराध होते रहते हैं ' यह मेरा दास है ' ऐसा समझकर आप उन सभी अपराधों को क्षमा कीजिए ।
आवाहन न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि ।।
हे परमेश्वरि मैं आवाहन करना नहीं जानता, विसर्जन करना भी नहीं जानता एवं पूजा करने की पद्धति भी मुझे ज्ञात नहीं है। आप क्षमा कीजिए ।
मन्त्र हीनं क्रिया हीनं भक्ति हीनं सुरेश्वरि ।
यत्पूजित मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे ।।
हे देवि सुरेश्वरि मैंने जो मन्त्रहीन , क्रियाहीन एवं भक्ति हीन पूजन किया है वह सब आपकी कृपा से पूर्णता प्राप्त करें ।
अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच् चरेत् ।
यां गतिं समवाप्नोति न तां ब्रह्मादयः सुराः ।।
सैकड़ों अपराध करके भी जो तुम्हारी शरण में जाकर ' जगदम्बा जगदम्बा ' पुकारता है उसे वह सुगति प्राप्त होती है जो ब्रह्मादिक देवों के लिए भी दुष्प्राप्य है ।
सापराधो ऽस्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके ।
इदानीम नुकम्प्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरु ।।
हे जगदम्बिके मैं अपराधी हूँ किन्तु तुम्हारी शरण में आया हूँ अतः आपकी दया का पात्र हूँ , आप जैसा चाहे वैसा करें ।
अज्ञानाद्वि स्मृतेर्भ्रान्त्या यन्न्यू नमधिकं कृत्य ।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि ।।
हे देवि हे परमेश्वरि अज्ञान भूल या भ्रान्ति के कारण मैंने जो भी विधान के प्रतिकूल न्यूनता या अधिकता कर दी हो उन सबको आप क्षमा कीजिए एवं प्रसन्न होइए ।
कामेश्वरि जगन्मातः सच्चिदानन्द विग्रहे ।
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि ।।
सच्चिदानन्द स्वरूपा हे परमेश्वरि हे जगन्माता कामेश्वरि आप प्रेमपूर्वक मेरी यह पूजा स्वीकार कीजिए और मुझ पर प्रसन्न होइए ।
गुह्याति गुह्य गोप्त्री त्वं गृहाणा स्मत्कृतं जपत्य ।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात् सुरेश्वरि ।।
हे देवि हे सुरेश्वरि आप गोपनीय से भी गोपनीय वस्तु की रक्षा करने वालि हैं । मेरे निवेदन किये हुए इस जप को आप ग्रहण कीजिए। आपकी कृपा से मुझे सिद्धि प्राप्त हो ।।
इसके अनन्तर देवी के अङ्गों एवं परिवार आदि की पूजा की जाती है । यदि देवी के अङ्ग एवं परिवार आदि की पूजा निष्पान्न नहीं की जाती तो साधना फलवती नहीं होती हैं ।।
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