आदिशम्भु स्वरूप मुनिवर चन्द्रशीश जटाधरं।
मुण्डमाल विशाल लोचन वाहनं वृषभध्वजम्॥
नागचन्द्र  त्रिशूल डमरू भस्म अङ्ग  विभूषणं।
श्रीनीलकण्ठ हिमाद्रि जलधर विश्वनाथ विश्वेश्वरम्॥

गङ्ग   सङ्ग   उमाङ्ग  वामे  कामदेव  सु  सेवितं।
नादबिन्दुज योगसाधन पञ्चवक्त्र त्रिलोचनम्॥
इन्दु बिन्दु विराज शशिधर शङ्करं सुरवन्दितं।
श्रीनीलकण्ठ हिमाद्रि जलधर विश्वनाथ विश्वेश्वरम्॥

ज्योतिलिङ्ग स्फुलिङ्ग फणिमणि दिव्यदेव सु सेवितं।
मालती सुर पुष्प माला कञ्च धूप निवेदितम्॥
अनल कुम्भ सुकूम्भ झलकत कलश कञ्चन शोभितं।
श्रीनीलकण्ठ हिमाद्रि जलधर विश्वनाथ विश्वेश्वरम्॥

मुकुट क्रीट सु कनक कुण्डल रञ्जितं मुनि मण्डितं।
हार मुक्ता कनक सूत्रित सुन्दरं सु विशेषितम्॥
गन्धमादन शैल आसान दिव्य ज्योति प्रकाशनं।
श्रीनीलकण्ठ हिमाद्रि जलधर विश्वनाथ विश्वेश्वरम्॥

मेघ डम्बर छत्र धारन चरन कमल विला सितं।
पुष्प रथ परमदन मूरति गौरि सङ्ग सदा शिवम्॥
क्षेत्रपाल कपाल भैरव कुसुम नवग्रह भूषितं।
श्रीनीलकण्ठ हिमाद्रि जलधर विश्वनाथ विश्वेश्वरम्॥

त्रिपुर दैत्य विनाश कारक शङ्करं फल दायकं।
रावणाद् दश कमल मस्तक पूजितं वरदायकम्॥
कोटि मन्मथ  मथन  विषधर हार भूषण भूषितं।
श्रीनीलकण्ठ हिमाद्रि जलधर विश्वनाथ विश्वेश्वरम्॥

मथित जलधिज शेषवि गलित काल कूट विशोषणं।
ज्योतिवि गलित दीप नयन त्रिनेत्र शम्भु सुरेश्वरम्॥
महादेव सुदेव सुरपति सेव्य देव विश्वम्भरं।
श्रीनीलकण्ठ हिमाद्रि जलधर विश्वनाथ विश्वेश्वरम्॥

रुद्ररूप भयङ्करं कृत भूरिपान हला हलं।
गगन वेधित विश्वमूल त्रिशूलकरधर शङ्करम्॥
कामकुञ्जार मान मर्दन महाकाल विश्वेश्वरं।
श्रीनीलकण्ठ हिमाद्रि जलधर विश्वनाथ विश्वेश्वरम्॥

ऋतु वसन्त विलास चहुँदिशि दीप्यते फल दायकं।
दिव्य काशिक धामवासी मनुज मङ्गल दायकम्॥
अम्बिका तट वैद्यनाथं शैल शिखर महेश्वरम्।
श्रीनीलकण्ठ हिमाद्रि जलधर विश्वनाथ विश्वेश्वरम्॥

शिवस्तोत्र प्रतिदिन ध्यानधर आनन्दमय प्रतिपादितं।
धन धान्य सम्पत्ति गृह विलासित विश्वनाथ प्रसादजम्॥
हर धाम चिरगण सङ्गशोभित भक्त वर प्रियमण्डितं।
आनन्द वन आनन्द छवि आनन्द कन्द विभूषितम्॥

॥इति विश्वनाथाष्टक स्तोत्रं सम्पूर्णम्॥