अच्युतं केशवं राम नारायणं ।कृष्ण दामोदरं वासुदेवं हरिम् ॥श्रीधरं माधवं गोपिका वल्लभं ।जानकी नायकं रामचन्द्रं भजे ॥
अच्युतं केशवं सत्य भा माधवं।माधवं श्रीधरं राधिकाऽराधितम्॥इन्दिरा मन्दिरं चेतसा सुन्दरं।देवकी नन्दनं नन्दनं सन्दधे ॥
विष्णवे जिष्णवे शङ्खिने चक्रिणे।रुक्मिणी रागिणे जानकी जानये॥बल्लवी वल्ल भाया ऽर्चितायात्मने।कंस विध्वं सिने वंशिने ते नमः॥
कृष्ण गोविन्द हे राम नारायण।श्रीपते वासुदेवा जित श्रीनिधे॥अच्युतानन्द हे माधवा धोक्षज।द्वारका नायक द्रोपदी रक्षक॥
राक्षस क्षोभितः सीतया शोभितो।दण्ड कारण्य भूपुण्यता कारणः॥लक्ष्मणे नाऽन्वितो वानरैः सेवितो।ऽगस्त्य सम्पूजितो राघवः पातु माम्॥
धेनुका रिष्ट कोऽनिष्ट कृद् द्वेषिणां।केशिहा कंसहृद्वं शिका वादिकः ॥पूतना कोपकः सूरजा खेलनो ।बाल गोपालकः पातु माँ सर्वदा ॥
विद्य दुद्दयोत वान् प्रस्फुर द्वाससं।प्रावृडम्भो दवत् प्रोल्ल सद्विग्रहम्॥वन्यया मालया शोभितोरःस्थलं।लोहितां घ्रिद्वयं वारिजाक्षं भजे॥
कुञ्चितैः कुन्तलैर्भाज मानाननं।रत्न मौलिं लसत् कुण्डलं गण्डयोः॥हार केयूरकं कङ्कण प्रोज्ज्वलं।किङ्किणी मञ्जुलं श्यामलं तं भजे॥
अच्युतस्याऽष्टकं यः पठेदिष्टदं,प्रेमतः प्रत्यहं पूरुषः सस्पृहम्।वृत्ततः सुन्दरं कर्तृ विश्वम्भरं,तस्य वश्यो हरिर्जायते सत्त्वरम्॥
॥इति श्रीशङ्करा चार्य विरचित मच्युताष्टकं सम्पूर्णम्॥
॥ अच्युताष्टक स्तोत्रम् ॥ २ ॥अच्युता ऽच्युत हरे परमात्मन्।राम कृष्ण पुरुषोत्तम विष्णो॥ |
अच्युता ऽच्युत हरे परमात्मन्।राम कृष्ण पुरुषोत्तम विष्णो॥वासुदेव भगवन्न निरुद्ध।श्रीपते शमय दुःखम शेषम् ॥
विश्व मङ्गल विभो जगदीश।नन्द नन्दन नृसिंह नरेन्द्र॥मुक्तिदायक मुकुन्द मुरारे।श्रीपते शामय दुःखम शेषम्॥
रामचन्द्र रघुनायक देव।दीनानाथ दुरित क्षयकारिन्॥यादवेन्द्र यदुभूषण यज्ञ।श्रीपते शमय दुःखम शेषम्॥
देवकी तनय दुःख वाग्ने।राधिका रमण रम्यसु मूर्ते॥दुःख मोचन दयार्णव नाथ।श्री पते शमया दुःखम शेषम्॥
गोपिका वदन चन्द्र चकोर।
नित्य निर्गुण निरञ्जन विष्णु॥
पूर्णरूप जय शङ्कर सर्व।
श्री पते शमय दुःखम शेषम्॥
गोकुलेश गिरिधा रणधीर।यामुनाच्छ तटखेलन वीर॥नारदादि मुनि वन्दित पाद।श्री पते शमय दुःखम शेषम्॥
द्वारका धिप दुरन्त गुणाब्धे।प्राणनाथ परिपूर्ण भवारे॥ज्ञानगम्य गुणसागर ब्रह्मन्।श्री पते शमय दुःखम शेषम्॥
दुष्ट निर्दलन देव दयालो।
पद्म नाभ धारणीधर धारिन्॥
रावणान्तक रमेश मुरारे।
श्री पते शमय दुःखम शेषम्॥
अच्युताष्ट कमिदं रमणीयं निर्मितं भवभयं विनिहुन्तुम्।
यः पठेद् विषयवृत्ति निवृत्तिर् जन्मदुःख मखिलं स जहाति॥
॥इति श्रीशङ्करा चार्य विरचित मच्युताष्टकं स्तोत्रं समाप्तम्॥
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